बरगद सी छाँव देता पैर कटनें पर पाँव देता

बरगद सी छाँव देता
पैर कटनें पर पाँव देता

जीवन भर फल देता
हर मुश्किल का हल देता

अपनी बातों से गुदगुदा देता
अपनी यादों से रुला देता

हम रूठते वह मना लेता
हम जागते वह सुला देता

हमारे झूठ को जान लेता
हमारी गलतियों को मान लेता

हम भागते वह पकड़ लेता
हमारी बुराईयों को जकड़ लेता

हमसे ही उनकी मुश्किलें पर हमपे
फिदा होता है
रिस्ता एक ही महत्वपूर्ण जीवन में
वह पिता होता है
अभिषेक द्विवेदी

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