खिलखिलाती वेदना

“गीत”

“खिलखिलाती वेदना”
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कंटको पर पंखुड़ी सी,
खिलखिलाती वेदना!
गीत बनकर निज अधर पर,
गुनगुनाती वेदना!

आँख के रस्ते उतरकर,
गाल को नित चूमती!
छू हृदय की अंतिका को,
मोर सी यह झूमती!

जिंदगी के खेत में यों,
लहलहाती वेदना!
गीत बनकर निज अधर पर,
गुनगुनाती वेदना!

मैं स्वयं को ढूढती हूँ,
शून्य में होकर विलय!
शूफियाना जिंदगी है,
भूमि विस्तर छत निलय!

रात में तारों सरीखी,
झिलमिलाती वेदना!
गीत बनकर निज अधर पर,
गुनगुनाती वेदना!

दर्द की अनमोल मोती,
है मिली उपहार में!
बावरी हूँ राधिका सी,
सावरे के प्यार में!

धड़कनों में पंक्षियों सी,
चहचहाती वेदना!
गीत बनकर निज अधर पर,
गुनगुनाती वेदना!

आँख में गहरा समंदर,
किन्तु सूखा मन नगर!
लाश कंधों पर स्वयं का,
ढो रही हूँ हर पहर!

काल सी विकराल बनकर ,
पास आती वेदना!
गीत बनकर निज अधर पर,
गुनगुनाती वेदना!

रेनू द्विवेदी
लखनऊ

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