डर के आगे जीत”
विधा – – कविता
शीर्षक- “डर के आगे जीत”
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बहुत बुरे हालात नहीं हैं,
अभी हाथ है सब कुछ अपने।
इतनी जल्दी क्या उठने की?
रात बहुत है देखो सपने।
वह अनुभव था बहुत भयंकर,
डर से सारी कथा भरी है।
फिर भी हार नहीं मानी है,
डर के आगे जीत खड़ी है।
डर रखता हमको चौकन्ना,
सावधान का संकेतक है।
डर से उमंग कभी ना मरती,
यह ना कोई निश्चेतक है।
घोर तिमिर लगता डरावना,
उससे दीपक ज्योत बड़ी है।
ह्रदयदीप ज्योति में देखें,
डर के आगे जीत खड़ी है।
डर लगना तो स्वाभाविक है,
इसमें कोई दोष नहीं है।
पर डर कर जो रण को छोड़ें,
सबसे बढ़कर दोष यही है।
शत्रु शक्ति की थाह मिलेगी,
लक्ष्य प्राप्ति की प्रथम कड़ी है।
डर कर भी जो डटे रहें तो,
डर के आगे जीत खड़ी है।
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लोकेन्द्र कुम्भकार,
शाजापुर (मध्यप्रदेश)।
“मैं प्रमाणित करते हुए घोषणा करता हूँ कि यह उपरोक्त रचना मेरी अपनी स्वरचित और अप्रकाशित है। माननीय संपादक महोदय, प्रकाशनार्थ इसमें यथोचित संशोधन करने लिए स्वतंत्र हैं।”
– लोकेन्द्र कुम्भकार
दिनांक- १६/०७/२०२१