सरसी / कबीर /समुंदर छंद

◆सरसी / कबीर /समुंदर छंद◆

विधान~एक चरण चौपाई + एक सम चरण दोहा [16+ 11= 27 मात्राओं का सम मात्रिक छंद है] 16,11 पर यति।16 मात्रिक भाग को चौपाई की तरह निभाया जाता है जबकि 11 मात्रिक भाग का दोहा के सम चरण की तरह।
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27 मात्रा 16/11 अंत गाल गुरु लघु {21}
4 चरण, क्रमागत 2-2 चरण समतुकांत।
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1-
गणपति की सेवा करते जो,
चमकें जैसे भान।
गजमुख की गुणगाथा गाते,
बढ़ती जगमें शान।।
अंधे भी लोचन पाते हैं,
बनते विगड़े काम।
बाँझ नार भी लालन पाती,
लंबोदर के धाम।।
2-
बिछड़ गए जो निज साथी से,
मिलते हैं वे आन।
जीवन बीते बड़ी खुशी से,
देते विद्या दान।।
गौरी सुत ही भरें खजाना,
जैसा जिसका काम।
लंबोदर को हृदय बसाना,
पावन जिनका नाम।।
3-
पूजा होती सबसे पहले,
जाने सकल जहान।
जो जो प्राणी आते दरपे,
बनते जगत महान।।
कंचन करते कोड़ी काया,
प्रभुपग धूली छान।
गौरी सुत से लगन लगाके,
कर चरणामृत पान।।
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प्रभुपग धूल
लक्ष्मी कान्त सोनी
महोबा
उत्तर प्रदेश

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