माँ
🌹माँ 🌹
रहे जब तलक माँ की गोद में,ख़ुद को हर गम से महफूज़ पाया,”माँ” रहीं भूखे पेट हमें जी भर खिलाया!
“माँ” देती रहीं परीक्षा कड़ी, पाँव में छाले लिये आगे बढ़ी, “माँ”नें हम से हर दर्द छुपाया !
“माँ “करती है मजदूरी चंद पैसों के लिये, माँ नें गरीबी में सारा जीवन बिताया, हमें राजकुमार सा दुलारती राजाबेटा कहकर बुलाया!
“माँ” ख़ुद के लिये नहीं लेती कभी नयी साड़ी,
हमें सबकुछ मनचाहा दिलाया!
सीता सा किया तप, बच्चों को लव -कुश बनाया,
चाहे रहें वन या झोपड़ी में “माँ” नें स्वाभिमान के साथ ही जीना सिखाया!
“माँ” तो है वो जिसे ” विधाता” नें स्वयं से भी “श्रेष्ठ” बताया, “माँ” की ममता को शब्दों में भला कौन व्यक्त कर पाया!
स्वरचित एवं मौलिक
*पूजा मिश्रा*
रीवा (म. प्र.)