कलम फँसी है जंजीरों में, कौन करे आजाद इसे।

बह्र-
(12 12 2 222 2
21 12 221 12)
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कलम फँसी है जंजीरों में,
कौन करे आजाद इसे।
उलझ गई हैं तस्वीरों में,
कौन करे आबाद इसे।।

कलम स्याही फीकी पड़ती,
साफ नहीं अक्षर लिखती।
कलम विचारी घुट घुट रोती,
कौन करे बर्बाद इसे।।

भरी स्याही काली इसमें,
काले काले कागज हैं।
चले कलम सादा पन्नों पे,
कौन करे अनुवाद इसे।

लिखे कहानी झूठी सारी,
ईश्वर के आधार नहीं।
बहे नयन से पानी प्रभुपग,
कौन करे सुखवाद इसे।।
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प्रभुपग धूल
लक्ष्मी कान्त सोनी
महोबा
उत्तर प्रदेश

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