मेघमाला… सावन की रुत

मेघमाला… सावन की रुत
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सावन की रुत आई,
सावन की रूत हैं आई।
खुशियाँ ही खुशियाँ लाई,
चंहुदिशी हरियाली छाई ।
संपूर्ण प्रकृति हर्षाई…सावन की रूत आई ।।

श्रृंगार किया है इसने,
हरे रंग का आंचल ओढ़े।
फूलों के है गहने पहने,
कितनी सुंदर लगी है दिखने।
दुल्हन सी ये मुस्काई…सावन की….।।

बैचेन सी धरती तपती,
और लू लपेटों से कंपती।
ऊंचे नभ पर घन छाये,
मेघों ने प्यास बुझाई ।
घनघोर सी झड़ी लगाई…सावन की….।।

बारिश की इन बूंदों ने,
कृषकों का हैं मन जीता।
खेतो में चले हल लेकर,
ले संकल्पों की गीता।
नव आशा ले अंगड़ाई…. सावन की…।।

सखियों संग झूला झूले,
और पावन पर्व मनाये।
तन मन हो रहे तंरगित,
और गीत झूमकर गाये।
सुंधिया करती हैं पहुनाई……. सावन की….।।

योगिता चौरसिया “प्रेमा”
स्वरचित/मौलिक
मंडला(म.प्र.)

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