बांधी तुझ संग प्रीत की डोरी,

बांधी तुझ संग प्रीत की डोरी,
तू श्याम मैं राधा गोरी ।
कितने मौसम बेरंग बीते ,
दरस को तरसे अंखियां मोरी।

लूटा तेरे झूठे वादों ने ,
दुश्वार किया जीवन यादों ने।
पपीहे सी पीयू पीयू रटती ,
आग लगाई सावन भादो ने।

हर सांस तेरा नाम पुकारे,
सिसक सिसक दिन रैन गुजारे।
तू निष्ठुर मैं बिरहा की मारी,
पंथ निहारूं सांझ सकारे ।

तुम ही मेरे जीवन आधार ,
तुम बिन फीके सब त्यौहार।
ओ निर्मोही! अब तो आजा ,
लो कर बैठी सोलह सिंगार।

आशिमा वार्ष्णेय’राज’
स्वरचित मौलिक रचना

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