कभी छिपकर जताया है कभी जताकर छिपाया है
कभी छिपकर जताया है
कभी जताकर छिपाया है
ये दर्द- ए – इश्क़ है प्यारे
मलहम ना मिल पाया है
लड़कपन था तो बातें थीं
किताबों में गुलाबें थीं
मोहब्बत की वो पहली – सी
अंगड़ाई क़यामत थी
दिन में ख़ाब दिखते थे
रातें करवट बदली थीं
वो गुज़रे ज़रा क़रीब से
धड़कनें तेज़ होती थीं
जो गर ले ले हमारा नाम
हवाएं बहक उठती थीं
बड़ी उल्फ़त का था वो दौर
हमने शिद्दत से निभाया है
कभी छिपकर जताया है
कभी जताकर छिपाया है।
© तोषी व्यास
27.03.2021