दिन का स्वागत

दिन का स्वागत

रात ढलती रही दिन निकलता रहा,
लालिमा बिखेरता दिनकर उगता रहा,
चाँदनी जाती रही रौशनी आती रही,
वसुंधरा आज फिर स्वागत करती रही,
शांत पड़े सागर में हलचल हो रही।
शिशिर के ललाट पर हिम सी चमक रही।

हरी भरी दूब पर शशक दौड़ने लगे,
ओस की बूँदें पिघल के बहने लगी,
मवेशी ढलान पर झूम चलने लगे,
पंछियों के झुंड सब गीत गाने लगे,
जंगलों में वृक्ष हवा संग झूमने लगे।
पवन संग तितलियाँ स्वच्छंद उड़ने लगीं।।

तिमिर में बादल धूम मचाने लगे,
सरिता मैदान में लहरा के बहने लगी,
हवाएँ भी मस्त हो सरसराने लगी,
दूर कहीं पर मंदिर में घंटियाँ बजने लगीं,
नन्हें नन्हें बालक विद्यालय जाने लगे।
चारों दिशाओं में ख़ुशहाली छाने लगी।

ऋचा

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