रस्सी ताने खड़ी दो बालिका, एक मकान के पास
चित्राधारित सृजन
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विधा- कविता
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रस्सी ताने खड़ी दो बालिका, एक मकान के पास,
कर रही है बच्ची एक ,छलांग लगाने का प्रयास ।
है रस्सी-कूद ही बच्चों का,सबसे सस्ता एक खेल ,
खेल-खेल में हो जाता, सभी बच्चों में आपसी मेल।
थक जाता जब भी लिखते-पढ़ते, बच्चों का मन,
तब देता खेल इन्हें, भरपूर मनोरंजन तत्क्षण।
होता खेल से सब बच्चों का, तन – मन का विकास,
आपसी प्रेम बढ़ाकर, जगाता नेतृत्व की आस।
मिलता खेल से भरपूर, शौहरत और अकूत पैसा,
खेल बनाता जीवन को ,चमकीले मुकुट के जैसा।
-:रणविजय यादव जिला-अररिया बिहार।