शिक्षक

शीर्षक_ शिक्षक

माता पिता ने जीवन का पाठ पढ़ाया,
शिक्षक ने मानवता को समझाया।
अंजान थे हम इस जग की रीति से,
शिक्षक ने हमारा कार्य आसान बनाया।।

गुरुवर मेरे सच्चे पथ- प्रदर्शक,
राष्ट्र निर्माण में है संरक्षक।
मेरे ज्ञान का आधार है वे,
मेरे गुरु मेरे जीवन संवर्धक।।

प्रथम बार विद्यालय में जब प्रवेश किया,
गुरुजी से अपने आत्म -साक्षात्कार किया।
लोकाचार सीखा,अ अनार से ज्ञानी बनना सीखा,
गुरुजी ने हमारा प्रतिपल ज्ञानार्जन किया।।

सोने से कुंदन बनने का सफर पार कराया,
तपती धूप में चलकर मंजिल तक पहुंचाया।
क्या हुआ जो कड़ाई दिखाई गुरु जी ने,
जीवन यापन करने की ओर हमें चलना सिखाया।।

नवसृजन ,नवाचार की ज्योति जलाई,
कांटो में खिलते गुलाब की उपमा बताई।
यशवान हों, गुणवान हों, यही गुरु की आशा,
अपने गुरु के सम्मान में नयनों में चमक आई।।

रचना✍️
नम्रता श्रीवास्तव (प्र०अ०)
प्रा०वि०बड़ेहा स्योंढा
क्षेत्र-महुआ,जिला-बांदा

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