पहली नज़र का प्यार
विधा – कहानी
शीर्षक – पहली नज़र का प्यार
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गरमी के दिनों में सप्ताहांत की एक शाम थी। तीन दोस्त अविनाश, शिखा और सौरभ ने मिलने की योजना बनाई। शिखा अपनी कार लेकर आ रही है। उसने अविनाश और सौरभ को अपनी कार में लेकर ही रेस्त्रां जाने की योजना बनाई है। सूर्य ढल चुका है लेकिन फिर भी भीषण गरमी है। शिखा पहले अविनाश को लेने पहुंचती है। अविनाश को लेकर शिखा सौरभ को लेने चल दी। सौरभ दिल्ली के लाजपत नगर जैसे भीड़भाड़ भरे इलाके में रहता है। इसीलिए शिखा ने कार मुख्य सड़क पर ही किनारे लगा दी है। और सौरभ को फोन कर दिया की यहीं पर आजाओ फिर साथ में चलेंगे।
अविनाश और शिखा दोनों कार में सौरभ का इंतजार कर रहे हैं। शिखा अपनी नई कार की बड़ाई करती जा रही है। भीड़भाड़ वाले बाजारी इलाके और तरह तरह के शोरगुल में अविनाश को कुछ ऊब सी हो रही है। लेकिन फिर भी वो दिलचस्पी लेकर उसकी बातें सुनने की कोशिश करता है। अविनाश को समझ नहीं आ रहा था कि शिखा की बातों में कुछ बात नहीं है या फिर एक अनजाने शख्स में कोई खास बात है। अविनाश ने महसूस किया कि शायद कोई उसकी कार की तरफ चलता हुआ आ रहा है और वो अविनाश को ही देख रहा है। अविनाश ने तुरन्त अपनी आंखे शिखा से हटाकर सामने डाली तो उसे पता चला कि वो एकदम सही सोच रहा था। उसने देखा कि एक खूबसूरत लड़की उसकी तरफ देख रही है। पता नहीं उस लड़की को गरमी से दिक्कत थी या फिर उसे अपने बाल ऊपर चढ़ाकर स्टाइलिश जुड़ा बनाने का शौक था, पर ये बिल्कुल वैसा ही था जैसा अविनाश को पसंद था। वो लड़की अविनाश की तरफ ही आ रही थी। भीड़भाड़ और ट्रैफिक होने की वजह से धुआं भी काफी था लेकिन अविनाश उस लड़की की आंखे साफ देख सकता था। अविनाश ने ऐसी आंखे पहले कभी नहीं देखी थी। एक अजब सी चमक थी उनमें। नाक जैसे फुरसत में तराशी गई हो। गर्दन सुराही जैसी और मुस्कान….मुस्कान का तो कहना ही क्या। कुछ लोगों की मुस्कान देखकर लगता है, “हाय, क्या मुस्कान है!” कुछ मुस्कान अजनबी लोगों को भी जाना पहचाना बना देगी हैं। जिसे देखकर हम खुद मुस्कुराने पर मजबूर हो जाते है। कुछ ऐसी ही मुस्कान थी उसकी। अविनाश ने देखा की उसने मेहरून रंग की कुर्ती पहनी है, स्लेटी रंग की जींस जो उसकी एड़ियों से काफी ऊंची थी और भूरी राजस्थानी जूती। इन सब का मिलाजुला उत्तम संयोजन अविनाश को अपनी ओर आकर्षित कर रहा था। वो आकर्षण उसकी ओर ही चलता हुआ आ रहा था। ये पूरा खेल कुछ दस – पंद्रह सेकंड का रहा होगा। दोनों की आंखे मिली, दोनों ने एक दूसरे को देखा। जब दोनों एक दूसरे को देख रहे थे अविनाश ने महसूस किया कि उसकी धड़कन सत्तर से एक सौ सत्तर पहुंच चुकी है। और इसके बाद उसकी मुस्कान देखकर अविनाश ने भी हर्ष में मुस्कुरा दिया।
सबकुछ स्थिर हो गया। अविनाश निशब्द टकटकी लगाए देखता रहा और वो लड़की वहां से चली गई। जब अविनाश की चेतना वापस लौटी तो उसने पाया कि वो लड़की वहां से जा चुकी है लेकिन अविनाश ने महसूस किया कि वो लड़की साथ में उसकी आत्मा भी ले गई है। ऐसा अविनाश ने पहले कभी किसी के लिए महसूस नहीं किया था। अविनाश ने अपनी दोस्त शिखा से पूछा जो यह सब नजारा देख रही थी कि दस पंद्रह सेकंड में उसके साथ ये क्या घटना घटी!! तब शिखा ने कहा, “मुझे नहीं पता कि तुम दोनो के बीच क्या है, लेकिन मैंने महसूस किया कि तुम उन पलों में कुछ अलग ही थे। कौन थी वो?” शिखा ने पूछा। अविनाश बोला, ” मुझे नहीं पता, मैं कभी मिला नहीं, कभी देखा भी नहीं!” तब शिखा कहती है कि “मुझे नहीं पता तुम्हारा भविष्य क्या होगा? तुम्हारा उसके साथ कोई रिश्ता होगा या नहीं लेकिन तुम्हारी इतनी दृढ़ अनुभूति है तब तो तुम्हें एक बार उससे मिलना चाहिए, कम से कम एक हाय हैलो तो करना ही चाहिए।”
अविनाश बिना कुछ सोचे समझे गाड़ी से उतर जाता है, और वो लड़की जिस ओर गई थी उसी ओर चलने लगता है। रास्ते में जितने लोग भी मिलते हैं वो सभी का चेहरा गौर से देखता है। सभी के चेहरों में वो उस चेहरे को ढूंढता है। वो सभी दुकानों में सभी गलियों में देखता है कि कहीं वो इस दुकान उस गली में तो नहीं। वो हर जगह उसे ढूंढता है कि कहीं वो उसे मिल जाए तो उसे एक हाय ही कह दू। नहीं कुछ तो एक आंखो आंखो वाली बात ही कर लूं। ढूंढते-ढूंढते भीषण गरमी के कारण वो पूरा पसीने से लथपथ हो जाता है। वो अपने रुमाल से अपना चेहरा पोछता है जो पूरी तरह से हताश हो चुका था। अविनाश ने करीब पंद्रह – बीस मिनट तक उसे ढूंढा पर वो लड़की कहीं खो चुकी थी। लेकिन वो अकेले गुम नहीं हुई थी वो अविनाश की आत्मा भी ले गई थी।
बिना खुद को वापस पाए, अविनाश हताश निराश सा वापस लौट आता है। उसे लगता है जैसे वो बस एक दुनिया की सबसे छोटी प्रेम कहानी का किस्सा सा ही रह गया है। अविनाश कार में बैठता है। अविनाश का लटका मुंह देखकर शिखा सब समझ जाती है। वो अविनाश से कुछ कहने ही वाली होती है कि तभी कोई कार की खिड़की पर खटखटाता है। अविनाश अपनी निराशा के कारण उस तरफ नहीं देखता तभी शिखा उसे जोर से हिलाती है…”अरे उस तरफ देख!” जैसे ही अविनाश ने सिर घुमाया, अरे! ये क्या!!! ये तो वही है….जानी पहचानी सी अजनबी!!! अविनाश की धड़कने फिर से सत्तर से एक सौ सत्तर पहुंच गई और चेहरे पर एक अजीब सा संतोष आ गया।
अविनाश को लगभग उसके ख्यालों से जगाते हुए उस लड़की ने मुस्कान के साथ कहा, “एक्सक्यूज मी, हाय! एक्चुली आप जल्दी-जल्दी चलते हुए आ रहे थे, मैंने आपको कई आवाजें भी लगाई लेकिन शायद आपने सुनी नहीं। ये आपका रुमाल बाजार में ही गिर गया था, मुझे लगा कि आपको दे दूं।” उस लड़की ने रुमाल पकड़ते हुए कहा।
फिर क्या था दोनों की बातें शुरू हो गई! अब उनके बीच लफ़्ज़ों में बातें हो रहीं थीं लेकिन उनकी आंखे एक अलग ही कहानी गढ़ रही थी। एक दूसरे की आंखों की चमक वो दोनो महसूस कर रहे थे। उस दिन उस पल एक नई कहानी का आगाज़ हुआ था। अविनाश ने महसूस किया कि जैसे उसके चारों तरफ वॉयलेन बज रहें हो और दिल के होम थियेटर पर एक ही गाना बज रहा था…एक अजनबी हसीना से यूं मुलाकात हो गई..!!
– सोनल ओमर
कानपुर, उत्तर प्रदेश
स्वरचित व मौलिक रचना