दिल्ली की किच-किच मध्‍य प्रदेश उपचुनाव में कांग्रेस को पहुंचाएगी नुकसान

भोपाल, धनंजय प्रताप सिंह। दिल्ली में कांग्रेस के नेतृत्व को लेकर चल रही खींचतान प्रदेश में विधानसभा उपचुनाव में कांग्रेस को नुकसान पहुंचा सकती है। मध्‍य प्रदेश में कांग्रेस के लिए सत्ता का सूखा समाप्त करने वाले वर्ष-2018 के विधानसभा चुनाव याद कीजिए। मंदसौर में राहुल गांधी की रैली ने उस समय प्रदेश का सियासी मिजाज बदल दिया था, जब उन्होंने मंच से कर्जमाफी का वादा किया। गुटबाजी में उलझी कांग्रेस एकजुट हो गई थी, तो किसान भी कांग्रेस की तरफ उम्मीद भरी नजरों से देखने लगे थे। नतीजा रहा कि कांग्रेस ने सत्ता में वापसी की।

अब आते हैं ताजा हालात पर, कांग्रेस में शीर्ष स्तर पर कलह है। गांधी परिवार या गैर गांधी के नेतृत्व पर पार्टी दो फाड़ होती जा रही है। इसका असर सभी राज्यों के साथ उस मप्र पर भी पड़ रहा है, जहां विस की 27 सीटों पर उपचुनाव से पार्टी सत्ता में वापसी की आस लगाए बैठी है और ये कलह इन उम्मीदों को धुंधला कर रही है। कमल नाथ, दिग्विजय सिंह, विवेक तन्खा, मुकुल वासनिक, अजय सिंह सहित कई प्रमुख नेताओं के दिल्ली कनेक्शन से उपजी खेमेबंदी चर्चा में है।

कांग्रेस की कलह कार्यकर्ताओं को असमंजस में तो धकेल ही रही है, आम मतदाता भी कांग्रेस को लेकर ठोस नतीजे पर नहीं पहुंच पा रहा है। दरअसल, कमल नाथ और दिग्विजय सिंह मप्र में संगठन के मुख्य सूत्र हैं, लेकिन दिल्ली में मची उठापटक के बाद इनकी राहें एक नहीं दिख रहीं। उपचुनाव वाले क्षेत्रों में दोनों एक साथ नहीं गए, न ही उपचुनाव को लेकर कभी चर्चा के लिए बैठे, जिससे कार्यकर्ताओं में सक्रियता का संदेश जा सके।

उधर, ग्वालियर-चंबल संभाग में भी मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान और राज्यसभा सदस्य ज्योतिरादित्य सिंधिया का विरोध करने में थोड़ी संख्या में ही कांग्रेस कार्यकर्ता सामने आए। सिंधिया के भाजपा में जाने के बाद कांग्रेस में संगठन स्तर पर काफी उथल-पुथल देखी गई। ग्वालियर-चंबल में तो लगभग पूरा संगठन ही सिंधिया के समर्थकों के हाथों में था, जो अब भाजपा में जा चुके हैं, लेकिन यहां किसी को मौका नहीं दिया जा रहा है।

प्रत्याशी तय नहीं कर सकी पार्टी

कांग्रेस उपचुनाव की 27 विस सीटों पर अब तक प्रत्याशी तय नहीं कर सकी है। कड़ी टक्कर देने के लिए वो भाजपा में विद्रोह पर नजर रखे हुए है और भाजपा के बागियों को मौका देने की तैयारी में है। दूसरी मुश्किल है युवाओं को मौका न मिलना। सिंधिया के भाजपा में जाने के बाद कांग्रेस में युवा चेहरे की कमी है, जिसे भरने के लिए कमल नाथ, दिग्विजय सिंह के पुत्रों सहित जीतू पटवारी की खींचतान सड़क से सोशल मीडिया तक देखी गई है। बुजुर्ग नेताओं के ही हावी होने की दशा में युवा भी भविष्य के लिए इंतजार की मुद्रा में हैं। उन्हें उम्मीद है कि राहुल गांधी यदि पार्टी की कमान संभालते हैं, तो उन्हें मौका मिल सकता है, लेकिन जो हालात हैं, उसमें सोनिया गांधी ही छह महीने तक अंतरिम अध्यक्ष रहेंगी और इस बीच मप्र में उपचुनाव निपट जाएंगे। यदि कांग्रेस को आशा के अनुरूप परिणाम नहीं मिले तो कांग्रेस का कार्यकर्ता निराश होगा ही, पार्टी के एक बार फिर धड़ों में बिखर जाने का खतरा बढ़ा जाएगा।

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