बिखरते फूल

शीर्षक-बिखरते फूल

बिखरते फूलों को मैंने मुस्काते देखा,
सुरभित सुमन को गगन में उड़ जाते देखा।
न शिकन न मोह मकरंद के छूट जाने का,
बेला विदाई में भी उनको हर्षाते देखा।

सौंदर्य जिनका पुलकित करता था चमन को,
भ्रमर का गुँजन आह्लादित करता था मन को।
आज एक एक कर बिखर रही तृषित पंखुड़ियां,
बिखराव के पड़ाव में भी उन्हें जगमगाते देखा।

दे रहा सीख हमें, इक दिन सबको जाना है,
निज सौरभ से जग पुलकित कर जाना है।
अंतिम क्षण तक भी जो रहते हैं मुस्कुराते,
मिटकर भी उन्हें,दुनियां से जुड़ जाते देखा।
रीमा सिन्हा(लखनऊ)

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