भ्रष्टाचार का भूत “

बुधवार – ताटंक छंद प्रतियोगिता
विषय – ” भ्रष्टाचार का भूत ”
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दर्शन कर लो आज साथियों ,
लोलुप शिष्टाचारी का ।
रग -रग शिष्टाचार दिखाता ,
ऐसे भ्रष्टाचारी का ।।

तन-मन सजता सत्य निष्ठ सा ,
लेकिन मिथ्या भाषी है ।
धर्म-कर्म का घोर विरोधी ,
जाता मथुरा काशी है ।।

जपे राम मुख बगल में छुरी ,
बनता धर्माचारी है ।
नित्य प्रेम सौंदर्य सजाता ,
कहाता ब्रह्मचारी है।।

मधुर ध्वनि मुख वाणी निकले ,
अंतः मिथ्याचारी है ।
मित्र भाव रख सबको लूटे ,
मानव भ्रष्टाचारी है ।।
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( नरेन्द्र वैष्णव )
सक्ती

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