भ्रष्टाचार का भूत

भ्रष्टाचार का भूत।
ताटक छंद।
विधान-16-14 चरणान्त तीन गुरु चार चरण।
भ्रष्टाचार का भूत सवार,
कब तक देखते आयेंगे।
शासन करें कुछ तो आदेश,
पल भर में मिट जायेंगे।

चारों ओर है भ्रष्टाचार
करवाते हैं मन मानी ।
अपना ही पेट भरा करते,
होती हैं बेईमानी।।

भ्रष्टाचार का भूत डोले,
गरीब की झोली खाली।
कोरोना ने घर बैठाया,
छीनी रोटी की थाली।।

कुछ तो सोचो भ्रष्टाचारी।
सभी को मिले आजादी ।।
मिले सभी को रोजी-रोटी।
बची रहेगी आबादी।।

तृप्ता श्रीवास्तव

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *