घटते रोजगार बढ़ती युवाओं की भीड़ “

“प्रभु पग धूल पटल”
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विषय :— ” घटते रोजगार बढ़ती युवाओं की भीड़ ”
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नित्य प्रति शिक्षा , रोजगार और मानवीय सोच संकुचित होती जा रही है । जिस तरह से शिक्षा के प्रति प्रत्येक समाज का रूझान बढ़ा है , वैसे ही रोजगार के संबंध में भी लोगों की सोच परिवर्तित हुई है ।
आज देखा जाय तो देश के हर गाँव की जनता शिक्षा के क्षेत्र में अपना उत्कृष्ट सम्मान अर्जित कर रहा है , किंतु शिक्षित जनता की सोच संकुचित होती नजर आती है । कारण है शिक्षा का मतलब सरकारी नौकरी प्राप्त करना , और यदि शैक्षणिक योग्यता अर्जित युवा सरकारी नौकरी से वंचित रहता है तो सीधे-सीधे वह बेरोजगार कहलाने लगता है । प्रत्येक परिवार से सर्वेक्षण पश्चात् डिग्रीधारी व्यक्ति पालकों और शासन की नजरों में बेरोजगार बन जाता है । लोग ऐसे शिक्षित युवाओं को भीड़ की संज्ञा दे जाते हैं ।
मैं देश के सभी प्रबुद्ध उच्च शिक्षा प्राप्त राजनेताओं, उच्चाधिकारियों तथा समाज सेवकों व देश के चौथे स्तंभ कहलाने वाले सम्माननीय मिडिया जगत् से पूछना चाहता हूँ कि क्या आज हमारा अपना संतान शिक्षा ग्रहण कर लेता है तो क्या वह भीड़ तंत्र को जन्म देता है । नहीं , बिल्कुल नहीं । शिक्षित युवाओं को भीड़ की संज्ञा देना सर्वथा अनुचित प्रतीत होता है । आप स्वयं ही भीड़ जैसे शब्द को एकाग्र चित्त होकर चिंतन करके देखिए । यदि लगता है कि होनहार युवाओं को भीड़ कहें तो क्या हम अपने घरों में देश और समाज को भीड़ सौंपने हेतु बच्चों की परवरिश कर रहे हैं, जो वयस्क होते ही शासकीय नौकरी प्राप्त न होने पर “भीड़” नाम से देश के लिए भार बनकर रहेंगे ।
साथियों प्रत्येक व्यक्ति में अकूत प्रतिभाएँ होती हैं उन्हें तलाशने और तरासने से “भीड़” जैसे शब्द का संचालन मानव समाज की अपार शक्ति के द्योतक युवाओं के लिए होना शायद बंद हो जाए ।
“भीड़” इकट्ठा करना कुछ चुनिंदा लोगों की अतार्किक परिश्रम का प्रतिफल हो सकता है । एक , अनेक और तत्पश्चात् असंख्य शिक्षित युवाओं को गलत दिशा में भटकाने वाले साथियों से निवेदन करता हूँ कि ” युवा हमारे देश की जान हैं, शान हैं और भारत माता की शुचित मान हैं । ऐसे पढ़े-लिखे देश के भविष्य को बेरोजगारी भत्ता जैसे बेड़ियों में मत जकड़िए , उनकी लगनशीलता व मेहनतकश अंदाज़ का अवलोकन कीजिए तथा देश की सुरक्षा की ओर ध्यानाकर्षित करने सकारात्मक विचारों से उन्हें अभिसिंचित कीजिए ।
” जागरूकता ” यह शब्द किसी भी युवा को जीजिविषा की प्राकट्यता से मजबूती से जोड़ती है । सभी को अपने श्रम-बिंदुओं पर नाज होता है ।
शिक्षित युवा “भीड़” नहीं बल्कि आशियाना विहीन लोगों के लिए “नीड़” बनाने की सोच रखते हैं । उन्हें सशक्त पथ पर चलने अनुशासित करने की आवश्यकता है ।
कुछ साथी अपने साहस का परिचय देते हुए स्व-रोजगार स्थापित कर चुके होते हैं, उन्हें साहसी बनाइये । उनको प्रेरणा स्त्रोत मानकर शिक्षित युवाओं को प्रेरित किया जाय तो अवश्य ही समाज में एक अच्छा संदेशा जाएगा ।
प्रधानमंत्री जी ने युवाओं को शिक्षित कर कौशल विकास के माध्यम से स्वावलंबी बनाने की दिशा में जो अभियान चलाया है उसकी महत्ता को सर्व समाज तक पहुँचाने का संकल्प लें और देश की भावी दशा-दिशा को सबल बनाने में अपनी अहम् भूमिका निभाने हम सब प्रयास करें ।
मैं सभी युवाओं से भी आग्रह पूर्वक निवेदन करता हूँ कि आप अपने ऊर्जित और ऊष्मित स्वरुप को पहचानिए और स्व निर्णय से स्वयं को तथा देश को सुशोभित कीजिए ।
धन्यवाद
नरेन्द्र वैष्णव
सक्ती

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