Date: Jun 2, 2021 Subject: लावड़ी छंद:बेरोजगार” *बेरोजगार
Date: Jun 2, 2021
Subject: लावड़ी छंद:बेरोजगार”
*बेरोजगार*
【लावड़ीं छंद】
■ 1.
बेरोजगार कथा कह रहा,
रोजगार हिय-स्वामी की।
रोजगार की आशा,भाषा,
हृदय लिये अनुगामी की।
■2.
मां का अंक, कोष वैभव का,
कांधा तात,सहारे की।
मिला पारिवारिक संबल ज्यों।
चहुंदिस,मीत-दुलारे की।
■3.
जीवन की आशा,परिभाषा,
अभिलाषावत् सपनें थे।
चारों ओर चारु-उपवन था।
लता,बेल,तरु,अपने थे।
■4
तभी परीक्षा-काल सामने।
मुँह फैलाकर खड़ा हुआ।
बाल्यकाल काफूर हो गया,
“कल”,सुरसा मुख,अड़ा हुआ।
■5
रोजगार याचन की खिड़की,
दर दर भटके,बंद मिली।
सारी डिग्री,सारी दीक्षा,
नज़रों का छरछंद मिली।
■6
यौवन मांग,वंश वृद्धी के,
सपने चकनाचूर किये।
भामिनि,संतति, मातु-पिता के,
करतब फिर मज़बूर किये।
■7.
राजा मद में चूर,हूर हैं,
मस्त लावनी गावन में।
चाटुकार बांधे ढोलक हैं,
व्यस्त कमर मटकावन में।
■8.
प्यासे मृगवत तपन शांति हित,
भाग रहे चिलचिल रेती।
कहीं न दीखै रोजगार-जल,
मृगतृष्णां ,बंजर खेती।
■10.
जागो रोजी-रोटी दाता,
मादक-निद्रा तजि जागो।
विद्यार्थी, मन-भागीरथ बन,
रोजगार दो,मत भागो।
■11.
वरना समय क्षमा ना करता।
हांथ न कुछ रह जावेगा।
हाथों तोता उड़ जायेगा,
खड़ा खड़ा पछतायेगा।
■संतोष श्रीवास्तव”विद्यार्थी”
मकरौनियां, सागर, मध्यप्रदेश
9425474534
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