समाज का कैंसर नशा”
दिनांक 31/05/2021
दिन – सोमवार
विषय – “समाज का कैंसर नशा”
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“प्रभु पग धुल” मंच को तथा मंच के आदरणीय समस्त प्रबुद्ध पदाधिकारियों को यथोचित शिष्टाचार नमस्कार करते हुए आज के प्रदत्त विषय – ” समाज का कैंसर नशा ” पर लेख प्रस्तुत है ।
प्रत्येक मंच समाज सेवा को तत्पर रहते हुए समाजोत्थान तथा लोक कल्याणार्थ कार्य पर सदैव विचार केन्द्रित कर सफल कार्य-निष्पादन करते हैं ।
आज इसी कड़ी में अत्यंत गंभीर विषय पर विचार आमंत्रित किये गए हैं । शीर्षक से ही सामाजिक दशा और दिशा सुनिश्चित हो जाता है ।
आज समाज ‘शान’ के विपरीत ‘नशा’ को आत्मसात करते हुए समय-पथ पर अग्रसर है । घर -परिवार , समाज यह व्यक्ति की देन है। व्यक्ति के व्यक्तित्व से ही सामाजिक स्वरुप की झलकियाँ दृष्टिगोचर होने लगती हैं । ‘नशा’ नाश का कारण है । आज ‘बचपन से लेकर पचपन’ तक अर्थात् किशोर,युवा ,बुजुर्ग सभी ने ‘नशा’ का सहारा लिया है और अपने तथा समाज के लोगों की जिंदगी को निर्लज्जता के बाना में लपेट सा दिया है ।
कहा जाता है कि समाज की उत्कृष्टता शिक्षा व जागरुकता पर निर्भर करती है । यदि समाज के लोग सुशिक्षित और जागरुक हैं तो समाज की श्रेष्ठता सर्व समक्ष पूर्णता संपन्न दिखाई देती है ।
आज घर , विद्यालय, समाज, समुदाय , राज्य और राष्ट्र शिक्षा के क्षेत्र में विश्व स्तर पर अपनी पृथक पहचान स्थापित कर चुका है । जागरुकता के मामले में अत्यंत ही अग्रणी भूमिका में देखे जा सकते हैं ।
उक्त पंक्तियों को हम वास्तविकता की किस श्रेणी से आबद्ध कर सकते हैं, अत्यंत विचारणीय प्रश्न है । समाज कितना शिक्षित है यह आज की दशा गांभीर्यता से प्रकटित होता है । समाज का स्वरुप आज प्रशंसनीय नहीं रह गया है , यहाँ तक कि राज्य और राष्ट्र का प्रतिनिधित्व भी संदेहास्पद परिस्थितियों की ओर इंगित करता है ।
शिक्षा के क्षेत्र में अकूत सम्मान अर्जित किए जा रहे हैं,यह सब व्यक्तिगत तौर पर प्रशंसा और प्रसन्नता का संकलन मात्र है । कोरोना काल का भयावह मंजर और राज्य सरकारों का “मधुशाला प्रेम” जनता की संपन्नता को नष्ट प्राय करने का अभियान प्रतीत होता है ।
कुछ राज्यों के मुखिया का शराब दुकान खुलवाना और वहाँ के मधु प्रेमी जनता की उच्छृंखलता का अवलोकन आप स्पष्टतः कर सकते हैं ।
क्या योग्यता,शिक्षा और न्यायप्रियता रह गई है ऐसे राज्यों में ।
‘नशा’ का खुला व्यापार व व्यवहार आज समाज में घिनौने वारदातों,कृत्यों को अंजाम दे रहे हैं ।
लोग अपने घर ,परिवार में ही असुरक्षित से रह गए हैं । ‘नशा ‘ चाहे किसी भी स्वरुप में हो आज समाज के साथ-साथ पूरे राष्ट्र और विश्व को अपनी गिरफ्त में ले चुका है ।
मनुष्य की मनुष्यता गुम सी गई है । आज मानवता निःशक्त प्राय हो चुकी है । नशा से समाज का प्रत्येक कुनबा विचलित मानसिकता से अशोभनीय हो चुका है ।
नशा समाज में कैंसर की तरह अंदर ही अंदर मानवीय संवेदनाओं व मूल्यों को निशाना बना कर विनाश की अग्नि में जला रहा है । मर्यादा,सुसंस्कार,प्रतिष्ठा जैसे शब्द ‘समाज ‘ में मुँह छुपाए सिसकियाँ भर रहे हैं ।
साहसी व्यक्ति अपना साहसिक परिचय समाजोत्थान हेतु करता है तो वह चंद लम्हों में ही अदृश्य हो जाता है ।
नशा का बोलबाला समाज को अथाह गर्त में धकेलता चला जा रहा है । प्रत्येक घर परिवार का सदस्य नशा रुपी इस भयावह कैंसर से स्वयं को और परिवार को बचा सकता है ।
आज नशा मुक्ति दिवस की संकल्प (शपथ) से समूचे राष्ट्र और विश्व धरा को नशा मुक्त करते हुए प्रकृति के सुंदर और अप्रतिम सृजन को सुरक्षित और संरक्षित रखने में कामयाब हो सकता है ।
हमें परस्पर सहयोग से समाज में कैंसर बनकर उभरे इस विभिषिका का दमन करना होगा ।
धन्यवाद
नरेन्द्र वैष्णव
हरिओम काॅलोनी सक्ती
छत्तीसगढ़