जैसी करनी बैसी भरनी

जैसी करनी बैसी भरनी
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दोहा-
मच्छर मरते हैं नहीं,
कोरोना की मार।
मूरख जगके लोग हैं,
करते नहीं विचार।।
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(कई वर्षों से नहीं किया गया डी.टी. टी .का छिड़काव)-
#संक्रमक रोगों में मच्छरों की अहम भूमिका
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आज विश्व में फैली कोरोना जैसी भीषण आपदा का जिम्मेदार कोई और नहीं वल्कि स्वयं मानव ही है।
जो आज अपने कर्मों का फल भोगने पर मजवूर है ।आज देश व विदेशों में भीषण गंभीर संक्रमक रोग तेजी से फैले हुए हैं ।जो प्रतिदिन लाखों लोगों की जान निगल रहा है।आज मानव जाति रोग से निपटने के लिए ऐड़ी चोटी का जोर लगाए हुए है किंतु रोग के बढ़ते कदम रुकने का नाम नहीं ले रहे हैं।इसके विपरीत और अधिक तेजी से बढ़ते ही जा रहे हैं।
लेकिन सबसे अधिक चिंतनीय बात तो यह है इतनी भारी समस्या से जूझने के वावजूद भी मानव जाति अपनी गलती महसूस नहीं कर रही है ।
जिसे मानव जाति की मूर्खता ही कहा जाएगा।
आपको बता दें मानव खेतों में रसायनिक खादों का उपयोग करके जो फसलें पैदा कर रहा है वो मानव जीवन को फायदा देने की अपेक्षा मानव में रोगों को फैला कर हानि पहुंचाता देखा जा रहा है । रसायनिक पदार्थों के उपयोग से पैदा सब्जियां अनाज तैल आदि समूचे विश्व में उपयोग किए जा रहे हैं जो लोगों की रोग प्रतिरोधक क्षमता को कमजोर बना रहे हैं।जिसके फलस्वरूप गंभीर रोग आए दिन लोगों की आयु व जीवन को प्रभावित करते देखे जा रहे हैं।
तो दूसरी तरफ प्रकृति में मानव जाति के द्वारा इतना प्रदूषण फैलाया जा रहा है की हवा पानी जहरीले गुणों से ओत प्रोत हो चुके हैं जिसके फलस्वरूप लोगों को अपनी करतूत का फल भोगना पड़ रहा है।
लोग निरंतर गंभीर रोगों की चपेट में आते देखे जा रहे हैं।
तो इसी क्रम में आपको बता दें की मानव जाति के अपने स्वार्थ के चलते जंगलों से पेड़ों की कटान कर आधे से ज्यादा जंगल मैदान बना दिया जिसके परिणाम स्वरूप लोगों को औषधिय गुणों से भरपूर पेड़ों का लाभ नहीं मिल पा रहा है ।
पहले बिना किसी खर्च के भी वनों का क्षेत्र फल अधिक फैला हुआ था जो जोगों को विभिन्न प्रकार से लाभकारी सिद्ध होते थे किंतु आज मानव जाति के द्वारा भारी खर्च करने के वावजूद भी वनों का क्षेत्रफल पहले की अपेक्षा घटता ही जा रहा है ।जो एक विचारणीय व चिंतनीय विषय बना हुआ है आज लोग एलोपैथिक दवाओं को खाने पर मजवूर हैं अधिकांशतः औषधिय पेड़ धरातल से गायब होते जा रहे हैं।
पहले वनों से बहने वाली औषधिय गुणों से परिपूर्ण शीतल हवाएँ लोगों के सैकड़ों रोगों बिना औषधि सेवन के ही ठीक कर देते थे ।
लेकिन आज मानव ने जो अनावश्यक पेड़ों की कटान की है उसका फल संक्रमक रोगों के रूप में उभरकर सामने आ रहा हैं।
सबसे अधिक विचारणीय बात तो यह है पहले लोग संक्रमक कीटाणुओं के विनाश हेतु डी .टी टी का छिड़गांव घर घर करते थे थे किंतु बीते कई वर्षों से लोग डी टी टी का छिड़काव घरों में नहीं कर रहे हैं जिसके कारण तरह तरह के कीटाणु भूमंडल में अपना साम्राज्य बना बैठे है ।
जिसके चलते अनेक तरह के हानिकारक जीवाणु अपना राज्य समूचे विश्व मे कायम कर चुके हैं।
और मूर्ख मुखिया मुख्य कारणों पर ध्यान न देकर वैक्सीन की तलाश में लगी हुई है।
पर सोचने वाली बात तो यह है हमारे विश्व के वैज्ञानिक आज तक एक मच्छर का अंत नहीं कर पाए यानि मलेरिया का अंत नहीं कर पाए वही मूर्ख वैज्ञानिक कोरोना को नष्ट करने की बात कर रहे हैं।
आज लाखों लोगों की मौत मलेरिया जैसे कीटाणुओं के चलते होतीं देखीं जा रहीं हैं।
मच्छर मार नहीं सके कोरोना मारने की बात करते हैं इसे मानव जाति की मूर्खता ही कहा जाएगा जिसका फल आज मानव भोग रहा है।
यदि समय रहते प्रकृति को पवित्र बनाने के लिए मानव ने प्रयास नहीं किए तो आज तो लोग लॉक डाउन करके प्राण बचा रहे हैं किन्तु आगे यदि कुठिया में भी मानव घुस जाए तो भी उसके प्राण नहीं बचेंगे ।
मानव जाति को समय रहते बृक्ष धरा नारी पानी को बचाने का प्रयास तेज कर देना चाहिए व घर घर शहर शहर गांव गांव गली गली डी टी टी का छिड़काव करवाना चाहिए यदि ऐसा नहीं किया तो आने वाले समय में जो हालत होगी उसे सोच कर रोंगटे खड़े होते हैं।
आज का पापी मानव माँ का आँचल चीर कर आँचल की छाँव पाने की बात करता है जो मानव जाति की बहुत बड़ी मूर्खता है।जिसका परिणाम आज सबके सामने है।
आज न चिकित्सालय खाली हैं और न ही मरघट खाली हैं।
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प्रभुपग धूल
लक्ष्मी कान्त सोनी
महोबा
उत्तर प्रदेश

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