चुम्बक जैसे मेरे ईश्वर, खेंच रहे हैं अपने द्वार।
गीत आल्हा
वीर छन्द पर आधारित
16-15
चुम्बक जैसे मेरे ईश्वर,
खेंच रहे हैं अपने द्वार।
मानव चलें दिशा जो उल्टी,
दूर करेंगे पालन हार।।
1-
बेवश को जो तंग करोगे,
बढ़ जाएंगे तेरे पाप।
खाओगे जो जीव काट के,
बढ़ जाएंगे तेरे ताप।
जाओगे जो पाप गली में,
होगा नहीं कभी उद्धार।
चुम्बक जैसे—-
2-
लाचारों की सेवा कर के,
मानवता का समझें मान।
भूखों को जो दाना देते,
चमकें जैसे नभ के भान।।
प्यासे को जो नीर पिलाते,
होता उनका बेड़ापार।
चुम्बक जैसे—–
3-
चुम्बक साँच लौह को खेंचे,
पाप कनक को करती दूर।
मानव रहते पद पंकज में,
दानव नहीं पाएँगे धूर।
प्रभुपग दया धर्म मत छोड़ो,
प्रभुवर हैं जग के आधार।
चुम्बक जैसे——-
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प्रभु पग धूल
लक्ष्मी कान्त सोनी
महोबा
उत्तर प्रदेश