चमक रही है प्रेम पुजारिन, जैसे मनहर हीरा है।
अनुगीतिका
(लावड़ी छन्द पर आधारित)
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चमक रही है प्रेम पुजारिन,
जैसे मनहर हीरा है।
महक रही है जगमें ऐसे,
जैसे घर घर जीरा है।।
डोल रही है गली गली में,
लगती मनकी भोली है।
चाह भरी है मनमोहन की,
भटकी दर दर मीरा है।।
तड़फ रही है मछली जैसी,
उर में उसके पीड़ा है।
स्वाद भक्ति का चखतीं मीरा,
जैसे शक्कर शीरा है।
बिना डोर का बंधन देखो,
अद्भुद ऐ जंजीरा है।
दमक रही है नभ दिनकर सी,
सुंदर सुखकर हीरा है।।
प्रभुपग बैठे नैन निहारें,
खाते प्यारे खीरा हैं।
पीकर बिष भी अजर अमर हैं,
जैसे शंकर हीरा है।।
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प्रभुपग धूल
लक्ष्मी कान्त सोनी
महोबा
उत्तर प्रदेश