कौन बजाए मुरली, रैन घनी है खल की।
सारस छंद
आधारित गीत
मापनी-
2112 2112,
2112 2112
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सूख रही है धरनी,
पीर बड़ी है दिल की।
शोक भरीं हैं जननी,
सोच बड़ी है कल की।।
1-
मौत खड़ी है सिर पै,
पेड़ कटे हैं वन के।
भोग रहे हैं करनी,
आस नहीं है फल की।।
सूख रही है—–
2-
गाय नहीं हैं सुख में,
नैन बहातीं दुख में।
श्याम पुकारे तुमको,
चाल बुरी है छल की।।
सूख रही है—
3-
रोग जगे हैं जग में,
वास करे हैं सब में।।
कौन बजाए मुरली,
रैन घनी है खल की।।
सूख रही है—–
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प्रभुपग धूल
लक्ष्मी कान्त सोनी
महोबा
उत्तर प्रदेश