दंगल देख चुनावी जारी, करते विनती भारी।

सार छंद
1-
दंगल देख चुनावी जारी,
करते विनती भारी।
हाथ जोड़ के वोट मांगते,
पैर पड़ें की वारी।।
बोले वोट नशा मत देना,
होगी मेरी हारी।
काका बात मानलो मेरी,
समझो बात हमारी।।
2-
राजा अनपढ़ नहीं बनाना,
धोका अब मत खाना।
लेकर किताब घूमते अनपढ़,
सबका जाना माना।।
रोज अनार मचाते जो जन,
कहत अनार जिताना।
संपत देश जलाके कहते,
मुहर अलाव लगाना।।
3-
कीमत मत की समझो प्यारे,
मूरख बनकें हारे।
हीरे जैसे मत हैं यारो,
खोल अक्ल के तारे।।
लूट लिया धन देख देश का,
लगते मनके कारे।
प्रभुपग मौका सुंदर पाए,
चुनों नैन के तारे।।
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प्रभु पग धूल
लक्ष्मी कान्त सोनी
महोबा
उत्तर प्रदेश

 

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