गंगा की जल धार,भरी है शुचिता भारी। हो जाता भव पार, हरे माँ विपदा सारी।।
🥀छप्पय छंद🥀
सृजन शब्द,-शुचिता
1-
गंगा की जल धार,भरी है शुचिता भारी।
हो जाता भव पार, हरे माँ विपदा सारी।।
कीजे सरि में स्नान,राज ऐ गहरा जानो।
भारत की है शान,आज माँ इसको मानो।।
माँ गंगा सबकी जान हैं।
माता सबको तारतीं।।
माता ममता कीं खान हैं।
पापी पार उतारतीं।।
2-
राह धर्म मत छोड़,हृदय में शुचिता लाना।
नाता हरि से जोड़,पार भव से हो जाना।।
नाता हो बेजोड़,राम गुण गाथा गाना।
पापों से मुख मोड़,साथ सुख सागर लाना।।
अब राधे राधे बोलना।
मोहन को मत भूलना।।
अब शुचिता दिल में चाहिए।
फूलों जैसा फूलना।।
3-
सुंदर शुचिता देख,श्याम जी क्षण में आते।
मोहन उर को लेख,बैठ दिल पल में जाते।।
चंचल को मत भूल,हृदय में निसदिन छाते।
धो लो तनकी धूल,आज सच राज बताते।।
मन सज्जन शुचिता लाइए।
राघव स्वर में झूमना।।
अब पाप डगर मत जाइए।
प्रभु चरणों में घूमना।।
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🥀प्रभु पग धूल🥀
लक्ष्मी कान्त सोनी
महोबा
उत्तर प्रदेश