गंगवार ने औद्योगिक श्रमिकों के लिए उपभोक्ता मूल्य सूचकांक से जुड़ा संकलन जारी किया

 गंगवार ने औद्योगिक श्रमिकों के लिए उपभोक्ता मूल्य सूचकांक से जुड़ा संकलन जारी किया

केन्द्रीय श्रम एवं रोजगार मंत्री श्री संतोष कुमार गंगवार ने आज औद्योगिकी श्रमिकों के लिए उपभोक्ता मूल्य सूचकांक से जुड़ा संकलन (खंड I-IV, 1945 से 2020) जारी किया। इस अवसर पर श्री संतोष गंगवार ने कहा कि सात दशकों से अधिक समय तक के सीपीआई-आईडब्ल्यू पर ऐतिहासिक आकड़ों के डिजिटलीकरण और संकलन के रूप में प्रस्तुति इस विषय पर आकड़ों की कमी को दूर करेगी और यह मूल्य सूचकांक या अन्य आंकड़ों का संकलन करने वाली अन्य एजेंसियों के लिए प्रेरणादायी सिद्ध होगा। उन्होंने कहा कि संकलन अपने तरह का पहला प्रकाशन है और यह ऐसे समय में जारी किया जा रहा है, जब श्रम ब्यूरो अपनी स्थापना का शताब्दी वर्ष मना रहा है। श्रम ब्यूरो, सूचकांक संकलन और श्रम आँकड़ों पर इस देश का अग्रणी सार्वजनिक संस्थान है। इसमें उपभोक्ता मूल्य सूचकांक (सीपीआई) के संकलन पर विस्तृत व व्यापक जानकारी के साथ स्पष्टीकरण शामिल हैं। श्रम ब्यूरो ने 1945 से सूचकांक का संकलन करना शुरू किया। विभिन्न संस्थागत और अन्य हितधारकों के हितों को ध्यान में रखते हुए अपनी स्थापना के बाद से सभी सूचकांक संग्रह को क्रमवार एक संकलन के रूप में प्रकाशित करने की आवश्यकता महसूस की जा रही थी।

देश में विशिष्ट उद्देश्यों के लिए कई उपभोक्ता मूल्य सूचकांक श्रृंखलाएं उपलब्ध थीं, और लगभग हर श्रृंखला में समय के साथ संशोधन किये गए थे। पुराने समय में, प्रकाशित श्रृंखला की पहुंच संबंधित एजेंसियों तक सीमित थी और केवल पूर्ण योग के स्तर पर ही उपलब्ध थी। उपयोगकर्ताओं की मांग को पूरा करने के उद्देश्य से, श्रम ब्यूरो ने 1995 से औद्योगिक श्रमिकों के लिए उपभोक्ता मूल्य सूचकांक पर वार्षिक रिपोर्ट प्रकाशित करना शुरू किया, जिसमें प्रत्येक केंद्र के लिए उपसमूह सूचकांक का विवरण भी उपलब्ध था। इसे आगे बढ़ाते हुए, आधार-वर्ष 1944, 1949, 1960, 1982 और 2001 के लिए औद्योगिक श्रमिकों के सन्दर्भ में सीपीआई पर सभी सूचनाओं को एक साथ, संकलन के रूप में एक स्थान पर लाया गया है, जो शोधकर्ताओं और नीति निर्माताओं के लिए बहुत महत्वपूर्ण सिद्ध होगा।

श्रम एवं रोजगार सचिव श्री अपूर्व चंद्रा ने कहा कि औद्योगिक श्रमिकों के लिए उपभोक्ता मूल्य सूचकांक से संबंधित संकलन श्रम ब्यूरो द्वारा हासिल की गई एक उपलब्धि है और यह संकलन मूल्य सूचकांक एवं इससे संबंधित विषय से जुड़े विश्लेषण को एक नया आयाम देगा।” उन्होंने कहा कि संकलन में प्रत्येक केंद्र और अखिल भारतीय स्तर पर व्यापक समूह स्तरों के सूचकांक शामिल हैं। संकलन में 1944 और 1949 से लेकर 1960 से 1982 तक की अंतरिम श्रृंखला और जनवरी, 1945 से लेकर आधार वर्ष 2001 पर अगस्त, 2020 की अवधि के लिए नवीनतम श्रृंखला को शामिल किया गया है। समय और स्थान के संदर्भ में आंकड़ों की विशाल मात्रा के कारण इस संकलन को चार खंडों में विभाजित किया गया है। प्रत्येक खंड में, पाठकों की सुविधा के लिए सीपीआई की सामान्य विशेषताओं के साथ सूचकांक संकलन के सिद्धांत और प्रथाओं को विभिन्न अध्यायों के अंतर्गत रखा गया है। यह संकलन श्रम ब्यूरो द्वारा अपनी स्थापना के बाद से संकलित सीपीआई– आईडब्ल्यू सूचकांक के कालक्रमानुसार विकास की जानकारी देता है। परिशिष्ट में, व्यापक समूह स्तरों पर श्रृंखला के सूचकांक आंकड़े प्रस्तुत करने वाली सारणियां दी गयी हैं। पहले खंड में 1944 और 1949 के आधार वर्ष पर क्रमशः जनवरी, 1945 से मार्च, 1954 और अप्रैल, 1954 से जुलाई, 1968 की अवधि के लिए अंतरिम श्रृंखला और सूचकांक आकड़ों से संबंधित अध्याय हैं। दूसरे खंड में, 1960 की श्रृंखला पर अगस्त, 1968 से सितंबर, 1988 की अवधि के लिए सूचकांक आंकड़े प्रस्तुत किए गए हैं। तीसरे और चौथे खंड में, आधार वर्ष 1982 पर अक्टूबर, 1988 से दिसंबर, 2005 की अवधि के लिए तथा आधार वर्ष 2001=100 पर जनवरी, 2006 से अगस्त, 2020 तक की अवधि के लिए इसी तरह की जानकारी दी गयी है। इस संकलन के रूप में एक स्थान पर सीपीआई-आईडब्ल्यू से सम्बंधित सूचना की विशाल मात्रा; शोधकर्ताओं, नीति-निर्माताओं, छात्रों, आदि के लिए संदर्भ के रूप में काम करेगी, जो मूल्य सूचकांक और मुद्रास्फीति के रुझान को समझने में रुचि रखते हैं।

इस अवसर पर श्रम ब्यूरो के महानिदेशक श्री डी. पी. एस. नेगी ने कहा कि भारतीय श्रम ब्यूरो के मुख्य आधार सीपीआई-आईडब्ल्यू पर ये संकलन, उसके भंडार में संग्रहीत श्रम और मूल्य आंकड़ों पर डेटा की डिजिटलीकरण प्रक्रिया की शुरुआत है। उन्होंने कहा कि श्रम ब्यूरो द्वारा 1945 से औद्योगिक श्रमिकों के लिए उपभोक्ता मूल्य सूचकांक का संकलन किया जा रहा है। प्रारंभ में इसे श्रमिक वर्ग जीवन यापन लागत सूचकांक के नाम से जाना जाता था, जो मई, 1955 में भारतीय श्रम सम्मेलन के निर्णय के बाद श्रमिक वर्ग उपभोक्ता मूल्य सूचकांक में परिवर्तित हो गया। इसका उद्देश्य इस भ्रम को दूर करना था, कि सूचकांक; श्रमिक वर्ग के उपभोक्ताओं द्वारा वस्तु व सेवाओं के लिए भुगतान की गई खुदरा कीमतों में बदलाव को मापते हैं और इसे आधार अवधि में औसत पारिवारिक खपत के अंतर्गत शामिल करते हैं तथा ये सूचकांक कीमत में बदलाव के अलावा अन्य कारणों से जीवन यापन की वास्तविक लागत में बदलाव का संकेत नहीं देते हैं।

वर्तमान में आम आदमी के लिए उपलब्ध विभिन्न सांख्यिकीय उत्पादों में से उपभोक्ता मूल्य सूचकांक का सबसे अधिक उपयोग किया जाता है। जिन लाखों लोगों की मजदूरी उपभोक्ता मूल्य सूचकांक श्रृंखला से जुड़ी हुई है, उनके लिए यह सूचकांक लगभग एक घरेलू शब्द जैसा है। मूल्य वृद्धि के कारण उनकी वास्तविक मजदूरी किस हद तक क्षरण से सुरक्षित होगी, यह उपभोक्ता मूल्य सूचकांक श्रृंखला की गुणवत्ता और विश्वसनीयता पर निर्भर करता है। इस प्रकार, उपभोक्ता मूल्य सूचकांक की विश्वसनीयता के बारे में उपयोगकर्ताओं को आश्वस्त करने और संकलन की अवधारणाओं एवं तरीकों का मानकीकरण करने के उद्देश्य से वर्तमान में प्रकाशित किये जा रहे और उपयोग में लाये जा रहे उपभोक्ता मूल्य सूचकांक से संबंधित आंकड़ों की गहराई से छानबीन करना जरूरी हो जाता है।

औद्योगिक श्रमिकों के लिए उपभोक्ता मूल्य सूचकांक (सीपीआई) के संकलन और उसके रख-रखाव के इतिहास का मूल; प्रथम विश्वयुद्ध के बाद कीमतों में असामान्य वृद्धि के कारण श्रमिकों की बिगड़ी आर्थिक स्थिति में है। कीमतों और जीवन के निर्वाह-व्यय में तेज उछाल के परिणामस्वरूप, कुछ प्रांतीय सरकारों ने देश में औद्योगिक श्रमिकों के पारिवारिक बजट से संबंधित छानबीन और कामगार वर्ग के जीवन निर्वाह-व्यय सूचकांक एवं उपभोक्ता मूल्य सूचकांक से जुड़े आंकड़ों का संकलन शुरू किया। लेकिन इनमें से कोई भी पूरी तरह से संतोषजनक नहीं था।

श्रमिक वर्ग के निर्वाह-व्यय सूचकांक की अंतरिम श्रृंखला को श्रम ब्यूरो श्रृंखला और राज्य श्रृंखला में वर्गीकृत किया गया था। श्रम ब्यूरो श्रृंखला समान आधार 1944 = 100 पर आधारित थी, जबकि राज्य श्रृंखला विभिन्न परिवर्तनीय आधारों पर आधारित थी। एक अखिल भारतीय श्रृंखला को संकलित करने के उद्देश्य से इन श्रृंखलाओं को 1952 के आखिर में श्रम ब्यूरो श्रृंखला के अनुरूप समान आधार पर लाया गया था, लेकिन जल्द ही इसे अंकगणितीय परिवर्तन के माध्यम से 1949 के एक अन्य आधार पर संशोधित किया गया। आधार 1944 पर आधारित अंतरिम श्रृंखला में 24 केंद्र थे, जो तीन और राज्य श्रृंखलाओं को जोड़ने के बाद आधार 1949 में बढ़कर 27 हो गए। 1960 के एकसमान आधार पर आधारित नई श्रृंखला के अगस्त, 1968 में उपयोग के लिए तैयार हो जाने से पूर्व अंतरिम श्रृंखला जुलाई, 1968 तक उपयोग में रही।

राऊ कोर्ट ऑफ इन्क्वायरी द्वारा की गई सिफारिशों के अनुपालन के क्रम में, औद्योगिक श्रमिकों के लिए सीपीआई के संकलन और रख-रखाव का काम 1941 में केन्द्रीय सरकार द्वारा संभाला गया। हालांकि, 1958-59 के दौरान श्रम ब्यूरो द्वारा फैमिली लिविंग सर्वेक्षण के बाद ही देशभर में फैले 50 महत्वपूर्ण औद्योगिक केंद्रों पर जीवन निर्वाह– व्यय सूचकांक से संबंधित आंकड़ों और औद्योगिक श्रमिकों के लिए आधार 1960 = 100 पर आधारित उपभोक्ता मूल्य सूचकांक संबंधित आंकड़ों के संकलन से जुड़ी तकनीकी सलाहकार समिति के मार्गदर्शन के तहत एकसमान और वैज्ञानिक दृष्टिकोण से सूचकांक के आंकड़ों का संकलन शुरू किया गया। तब से लेकर आज तक उपभोक्ता मूल्य सूचकांक से संबंधित आंकड़ों का संकलन और उसका रख-रखाव श्रम ब्यूरो द्वारा नियमित आधार पर किया जा रहा है।

केंद्रीय क्षेत्र और केंद्र शासित प्रदेशों में सभी उपक्रमों के अनुसूचित रोजगारों में कार्यरत कर्मचारियों पर लागू उपभोक्ता मूल्य सूचकांक संख्याओं का समय-समय पर पता लगाने के लिए न्यूनतम मजदूरी अधिनियम, 1948 के तहत श्रम ब्यूरो ही सक्षम प्राधिकारी है।

सर्वेक्षण और नमूनाकरण, शेड्यूल डिजाइनिंग और कैनवसिंग, डेटा को ठीक करना और सारणीकरण, भार व्युत्पत्ति और औसत मूल्य गणना व सूचकांक गणना में लाए गए कई पद्धतिगत सुधारों ने इस सूचकांक की विश्वसनीयता को बढ़ाया। पहले की सीरीज के मुकाबले ये संशोधित सीरीज अपने दायरे और कवरेज में ज्यादा व्यापक थी और इसकी कुछ मुख्य विशेषताओं और सुधारों को आगे स्पष्ट किया गया है –

• 1960 की सीरीज में औद्योगिक श्रमिकों का कवरेज सिर्फ कारखानों, खदानों और वृक्षारोपण जैसे 3 क्षेत्रों तक सीमित था।

• 1982 में i) रेलवे, ii) सार्वजनिक मोटर परिवहन उपक्रम, iii) विद्युत उत्पादन व वितरण प्रतिष्ठान, और iv) बंदरगाह व पत्तन, इन चार और क्षेत्रों को शामिल करते हुए कामकाजी वर्ग के परिवारिक आय और व्यय सर्वेक्षण को करने के लिए इसे सात क्षेत्रों तक बढ़ाया गया। इन्हीं क्षेत्रों के समूह को फिर से 2001 सीरीज में कवर किया गया था।

• आय और व्यय के बारे में जानकारी एकत्र करने के लिए इस सर्वेक्षण में शामिल श्रमिक वर्ग परिवारों की संख्या 1960 में 23,460 परिवारों से बढ़कर 1982 में 32,616 परिवार और 2001 में 41,040 परिवार हो गई थी।

• केंद्रों की संख्या भी 1960 की सीरीज में 50 से बढ़कर 1982 में 70 और 2001 की सीरीज में 78 हो गई।

• बाजारों की संख्या भी 1960 में 142 से बढ़कर 1982 में 226 और 2001 की सीरीज में 289 हो गई।

• सूचकांक में रखी गई वस्तुओं की संख्या भी 1960 के 175 से बढ़कर 1982 में 260 और 2001 सीरीज में 392 हो गई।

• पुरानी सीरीज में अपनाई गई स्वीकार्यता की कसौटी के उलट, 1982 और 2001 की सीरीज में राशन की कीमतों का भार राशन की दुकानों में राशन की वस्तुओं की वास्तविक उपलब्धता के आधार पर निर्धारित किया जाता है।

• पुरानी सीरीज में किराए के सूचकांक को 100 पर ही रोककर रखा गया था, वहीं बाद की सीरीज में स्व-स्वामित्व वाले घरों के आवास सूचकांक की गणना तुलनीय किराए के घरों के किराए की गतिविधि के आधार पर की गई।

​मार्च 2006 में 2001 की सीरीज जारी होने के बाद से, कई केंद्रीय व्यापार संघ दबाव डाल रहे थे कि एक उच्चस्तरीय शक्ति वाली त्रिपक्षीय समिति द्वारा इन सूचकांक संख्याओं की समीक्षा करवाई जाए। उसी अनुसार, श्रम और रोजगार मंत्रालय ने नवंबर 2006 में प्रधानमंत्री की आर्थिक सलाहकार परिषद के सदस्य रहे प्रोफेसर जी. के. चड्ढा की अध्यक्षता में एक सूचकांक समीक्षा समिति का गठन किया ताकि संकलन और लिंकिंग फैक्टर के तरीकों, भार डायग्राम निकालने के लिए कार्य-पद्धति समेत सीपीआई-आईडब्ल्यू के विभिन्न पहलुओं की समीक्षा और मौजूदा मूल्य संग्रह प्रक्रियाओं तथा मूल्य संग्रह की मशीनरी पर अध्ययन और उसकी रिपोर्ट की जा सके और आगे के सुधार के लिए सिफारिशें की जा सकें। समिति ने इस सूचकांक के विभिन्न पहलुओं पर विस्तृत चर्चा और विचार-विमर्श के बाद, इस सीरीज के अगले संशोधन में शामिल किए जाने के लिए कुछ निश्चित सिफारिशें कीं, जिन्हें सितंबर 2020 में बेस 2016=100 पर शुरू की गई नई सीरीज में विधिवत शामिल किया गया।

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