राम छंद
17 मात्राएँ अंत में 122
1-
राम लखन संग काज समारो।
मात सिया संग आज पधारो।।
राम चन्द्र जी हृदय बसे हैं।
प्रभु हनुमान के अंग धसे हैं।।
2-
सीता राम का रूप सुहाना।
गरीबों का मन नहीं दुखाना।।
सीता राम जी जान हमारी।
राम भरते सुख खान तुम्हारी।। प्रभुपग धूल
लक्ष्मी कान्त सोनी
महोबा
उत्तर प्रदेश