चन्द्रावर्त्ता छन्द
चन्द्रावर्त्ता छन्द
विधान-
[नगण नगण नगण नगण सगण]
(111 111 111 111 112)
4 चरण,दो-दो चरण समतुकांत।
1-
प्रभु रघुवर गुण सब दिन कहिए।
प्रभु सुख सरवर जल दिल भरिए।।
जन जन दुख सब हरि हर हरते।
जन जन मन हरि सुखमय करते।।
2-
हम सुमरत कपि हनुमत तुमको।
कर सुखकर अब कपिवर हमको।।
कपि तन मन रघुवर छवि रहती।
हनुमत तन मन सुख सरि बहती।।
3-
गुरु पग रज सिर पर अब मलिए।
रघुवर पद रज सिर रख चलिए।।
कण कण प्रभु छवि अब जन लखिए।
रघुवर सुध अब जन मन रखिए।।
प्रभुपग धूल
लक्ष्मी कान्त सोनी
महोबा
उत्तर प्रदेश