पलकों में सपने सँजोये। आस मन पलती रही।।
🥀गीत🥀
15-12
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पलकों में सपने सँजोये।
आस मन पलती रही।।
नयनों को हम हैं भिगोए।
आग तन जलती रही।।
1-
तुम तो डगर से निकल गए,
धूली तो बिलख रही।
सोच दिल में पद पंकज की,
मछली मन मोह बही।।
कबसे हम तुमको पुकारें,
बिरह उर खलती रही।
पलकों में—–
कब हो मिलन मन मचल गए,
तुमसे ही जुड़े रहे।
समझे नहीं नित संग रहे,
चुम्बक से मुड़े रहे।।
तुमसे ही नजरें मिलाके,
नैन जल चखती रही।
पलकों में—
प्रभु पग के बिना हुए विकल ,
हठ पै ही रहे अड़े।
सत पथ से हम भटके हुए,
प्रभु से हम दूर खड़े।।
अपने ही तन में मिला ले,
साथ मैं लिपटी रही।
पलकों में—
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🥀प्रभु पग धूल🥀
लक्ष्मी कान्त सोनी
महोबा
उत्तर प्रदेश