नारी तू है सरस्वती, तू ही दुर्गा। तू है पार्वती, तू ही सीता। तेरे,
*नारी*
नारी तू है सरस्वती, तू ही दुर्गा।
तू है पार्वती, तू ही सीता। तेरे,
कई रूप काली दुर्गा तेरे कितनें,
है स्वरुप खुशियों का सँसार, तू,
तू है ममतामयी तू जीवनदायनी।
आस्था है तू एक अटूट विश्वास,
टूटी हुई उम्मीदों की तू है आस।
नारी तू है घर की शान आज के,
हर एक क्षेत्रों, में है सबसे ऊंचा।
तेरा स्थान दफ्तर, भी जाती।
ज़िम्मेदारीयो, का बोझ, भी तू,
हँसते, हुए उठाती, और अपने,
परिवार का मुख्य, आधार भी।
कहलाती घर के साथ। साथ तू,
महिलाएं, समाज, को सभ्य,
बनाने, से लेकर देशके विकास।
में अपनी महत्वपूर्ण भूमिका।
निभाती आजके जमानेमे देखा।
जाए तो पहले की तुलना में,
महिलाएं, आज कहीं ज्यादा।
आत्मनिर्भर और सक्षम है, इन,
सबके बावजूद, आज भी उन,
पर रुढिवादी, सोच हावी है।
*नीक राजपूत*
*गुजरात*
*9898693535*