केवल आज के ही दिन दो शब्द लिखकर महिला सम्मान का कोटा पूरा हो जायेगा

केवल आज के ही दिन दो शब्द लिखकर
महिला सम्मान का कोटा पूरा हो जायेगा
फिर वर्ष पर्यंत तक यह स्वार्थी समाज
जग जननी को खून के आँसू रुलायेगा

आज यही चलन चल पड़ा है संसार में
बस साल में एक दिन कर्तव्य निभाइये
बाकी के दिनों में अबला समझकर के
काम वासना की कुत्सित भूख मिटाइये

सम्मान न लिखने कहने चीज है साहब
यह तो अन्तरात्मा की गहरी उपज है
जो किसी के कहने या देने से न मिलती
हॄदय निर्झर से बहते स्रोतों की समझ है

जिसने नरसिंहों को गर्भ में धारण कर
महाराणा शिवाजी सूरज मल्ल बनाया
खड्ग हाथ में ले फिरंगियों को नचाया
नहीं कर दे मातृभूमि को लज्जित कहीं
हाड़ा बन अपना शीश थाल में सजाया

जो एक राजा की पुत्री बधू चक्रवर्ती की
धर्म रक्षा के लिए वन वन भटकती रही
हुई अग्निकुंड से पैदा पी अपमान विष
जीवन भर यातनाओं को सहती रही

कीन्हा असुरों का संहार नई सृष्टि रचाई
कैसे कमजोर वह कैसे निर्बल कहलाई
केवल नर की कुत्सित मानसिकता ही तो
उसके दिव्य स्वरूप को न पहचान पाई

यदि मना रहे अंतर्राष्ट्रीय महिला दिवस
तो उसे रमणी नहीं भगिनी व जननी मानिए
दीजिए जीवनभर सम्मान व अधिकार उसे
उसके अन्तःस्थल में छिपी प्रज्ञा पहचानिए।

अनन्त शुभकामनाओं के साथ🌹🌹🌹🌹👏👏

सत्यप्रकाश पाण्डेय

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