फागुन महीना देख के मन में उठें उछंग
हिलमिल खेलें होली डालें कान्हा पै रंग
जन्मजन्मांतर का सुफल मिल जायेगा
मिट जायेंगे कलुष हुओ जीवन बदरंग
श्याम रंग में रंगकर हो जायेंगी श्याम
भवसागर मुक्ति जीवन बने अभिराम
अपने हाथ वे मलेंगे अंग अंग में रंग
इससे बढ़ सुकृत्य न बड़ों कोई काम।
सत्यप्रकाश पाण्डेय