औरत

रसाल छंद
211 111 121 ,
211 121 121 1
औरत

औरत जगत सुधार,
चाहत सदा जग पालक।
पाकर अजब नसीब,
राहत बनी सब बालक।

चाहकर सुखद राह,
देख हम रोय दुखी बन।
औरत करत पुकार,
रोवत सदा अबला जन।

लागत सहज जहीन,
औरत हसीन लगे तब।
कोमल सहज स्वभाव,
पालक बनी सबकी अब।

नीलम कहत सुजान,
चाहत नसीब बनी जब।
औरत सुघड़ जहान,
मोहक लगे छब ये अब।

नीलम व्यास ‘स्वयमसिद्धा’

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