नर और नारी एक समान अदभुत रचना रची भगवान

नर और नारी एक समान
अदभुत रचना रची भगवान
दोनो है एक गाडी़ के दो पहिये
एक रुका तो पग बढ़ना मुश्किल
मतभेद हुआ तो घर चलना मुश्किल
स्वर्ग वही हो जाता घर है
जिसमें एक रंग में होते अरमान
नर और नारी एक समान
नर से नहीं नारी कमतर है
लाख ही नर मुखिया है घर का
नारी के ही सिर पर होता घर है
एक दूजे के पूरक है दोनों
एक बिछड़ गया तो निश्चय ही
घर हो जाता बिलकुल सुनसान
नर और नारी एक समान
दोनों मिलजुल कर साथ रहें तो
पर्वत को धूल बना सकते हैं
सूखी मरू बंजर धरती को
मधुवन सा महका सकते हैं
नर है यदि नदी की धारा
तो नारी है दो पाट किनारा
जीवन का है बस यही विधान
नर और नारी एक समान
रचना कार — सुभाष चौरसिया हेम बाबू महोबा

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *