औरत हाँ हाँ हाँ मैं औरत हूँ अबला हूँ मै नारी हूँ

औरत
हाँ हाँ हाँ मैं औरत हूँ
अबला हूँ मै नारी हूँ
थिरकती हूँ मैं तेरे इशारे पर
नाचती हूँ तेरे द्वारे पर
इसीलिए अबला हूँ
लेकिन निर्बल नहीं
शायद मेरा मोह मेरी ममता
मेरा दायित्व, मेरा कर्तव्य
मेरी जिम्मेदारियों की
हथकड़ी, बेडि़यों ने ही
मेरे बल मेरी ताकत को
जकड़ कर, कर लिया कैद
जो मैं निभा रही हूँ
शिद्दत से शदियों से
माँ, बेटी,बहिन, पत्नी बनकर
बस यही दोष है नारी का
बस यही अपराध है
जिसकी सजा भोग रही है
एक अबला, एक औरत ,एक नारी
बस यही लाचारी है
सह रही बेबस अत्याचार
इसीलिए अबला बेचारी है
रचना कार– सुभाष चौरसिया हेम बाबू महोबा

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