जो मन देखो करता , कर्म सदा सुंदर ही । मानव पथ पर बढ़ता , धर्म करे वो नर ही ।।
सारस छंद —-
मापनी –
यति — 12,12
2112 – 2112 , 2112 – 2112
सृजन शब्द- करुणा
जो मन देखो करता , कर्म सदा सुंदर ही ।
मानव पथ पर बढ़ता , धर्म करे वो नर ही ।।
उच्च हृदय हो जिसका , वो जब करता करनी ।
भाव भरोसे न रहे , वो भरता सत भरनी ।।
सत्य सदा सुख करता , दुःख यहाँ भोग करे ।
प्रेम प्रिया के दुख को , पिय पल में देख हरे ।।
सावन भावों बहना , राग हृदय में गढ़ना ।
हो उससे जीव सही , तू करुणा हृद भरना ।।
ले करुणा भाव यहाँ , आज मिलेंगे भगवन ।
रोज हृदय जाप करे , पावन हो तब यह मन।।
सोच विचारों फिर बढ़ , आज यहाँ कुछ करना ।
जोश जहाँ होश गए , मावन को ही भरना ।।
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व्यंजना आनंद “मिथ्या “✍️