समर्पित तो कर दिया एक रूह ने अपना सब कुछ
*समर्पण*
समर्पित तो कर दिया एक रूह ने अपना सब कुछ, जहां बस स्वार्थ की पुरवाई बहती रही ! यह समर्पण देख सबकी रूह भी कापी, तो वही स्वार्थी पुरवाई लज्जित हो बहती रही ! समर्पण की नादानी कई नादानियाँ करती रही, एक रूह से बिन शर्त ही समर्पित होने को कहती रही ! समर्पण का विश्वास जब लौ में जलता रहा, स्वार्थ का शरीर उसको देख थर थर काँपता रहा ! स्वार्थ तो अपनी पक्की इमारतें बनाते गया, पर समर्पण उसको ढहने पे मजबूर करता रहा…!!!
*DRx Vipin Rathore*
Mo-8303343519