डार मोहिनी हर लीन्हों मन तुमने रासबिहारी तन मन जीवन सब अर्पित गोवर्धन गिरिधारी
डार मोहिनी हर लीन्हों मन तुमने रासबिहारी
तन मन जीवन सब अर्पित गोवर्धन गिरिधारी
सुत कंतहु नीके न लागें जब से मिले मुरारी
तेरी मुरली की धुन सुन पागल हुई बृजनारी
घर गृहस्थी लगे न अच्छी तेरी याद सतावै
सोते जगते अंखियन कूँ तेरे रूप ही भावै
लता कुंज ऐसी लागै मानो अनल बरसावै
एक बात समझे बुद्धि तोय छोड़ कहां जावै।
सत्यप्रकाश पाण्डेय