बेटा अब बडा़ हो गया” बेटा अब बडा़ हो गया

कविता
“बेटा अब बडा़ हो गया”
बेटा अब बडा़ हो गया
अपने पैरों पर खडा़ हो गया
अम्मी को ये री कहने लगा
अब्बा को यार करके बुलाने लगा
पैसों की खनक में
रिश्ते सब दरक गये
मर गये सब उसूल
जो पढे़ थे हुरूफ
तोतली आवाज में
सीखा था मीठा बोलना
जब अम्मा को अम्म
अब्बा को अब
कहना जानता था
तो कितना प्यारा, दुलारा था
आंखों का तारा था
अंगुली पकड़ कर
चलना सिखाती थी माँ
तब गुनती थी धुनती थी
मन में यही विचार कर
ढडा़स बांध लेती थी
ढलती उम्र में, रुकती श्वासों में
जर्जर किश्ती का सहारा होगा
यूंही सहज गुजर जायेगी जिन्दगी
दरक गये सभी किनारे
आंखे जब चार हुईं
जवानी का जोश और
अहं का शैलाव आया
वालिद की किश्ती
जब भंवर में फंसी
बेटा हंसते, मुस्कराते
किनारे खडा़ हो गया
बेटा अब बडा़ हो गया
रचना कार — सुभाष चौरसिया हेम बाबू महोबा

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