घर आँगन में गूंँज रही है, नन्ही बेटी की किलकारी

नवगीत!

घर आँगन में गूंँज रही है,
नन्ही बेटी की किलकारी!! टेक!!

आयी घर में देख लक्ष्मी,
आँगन मेरा होबे शुद्धी!
तीन पुस्ति पाप धुल जाये,
यश, बैभव की धारा बहती!!
घर आँगन में गूंँज………

मन घमंड को चूरें करती,
अपना दान भी खुद कराती!
मात पिता का चिंता हरती,
नयी गृहस्थी वही बसाती!!
घर आँगन में गूंँज रही….

बेटी रहती पति के घर में,
चित्त लगा रहती माँ घर में!
पति के सँग वह रहती घर पर,
किन्तु भला माने माँ पितु की!!

घर आँगन में गूंँज रही है,
नन्ही बेटी की किलकारी!!

अमरनाथ सोनी अमर सीधी,
9302340662

पु

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