सागर सी गहराई हिय की दुनिया जिसके आँचल में
लौकिक न तुम परा अपरा….
सागर सी गहराई हिय की
दुनिया जिसके आँचल में
ममता समता की नदियां
बहती हैं जिसके दामन में
प्रेम प्रीति का अतुल कोष
त्याग समर्पण की मूरत
चेहरे पर लिए मृदुल भाव
तप तेज पुंज लिए सूरत
क्षमा वात्सल्य की प्रतिमा
संवेदनाओं का अक्षयपात्र
हृदय असीम करुणा भरे
न विचलन किंचित मात्र
साहस कि यम से टकराये
यदि ठान ले अपने मन में
छोड़ सभी सुख सुविधाएं
सुखी रहे वो घर या वन में
जिसके प्रति स्नेह आशक्ति
पल में सर्वस्व लुटा देती
सहचरी अर्धांगिनी बनकर
खुद का अस्तित्व मिटा देती
नमन है नारी शक्ति तुमको
सारा ही जीवन त्याग भरा
स्वयं विधाता की आराध्या
लौकिक न तुम परा अपरा।
सत्यप्रकाश पाण्डेय