सौगंध

दोहे–
सृजन शब्द-सौगंध
1-
खाते हैं सौगंध हम,
छोड़ें पापी राह।
राघव जग आधार हैं,
रघुवर की मन चाह।।
2-
भारत की सौगंध है,
दे देंगे हम जान।
माटी धारी अंग में,
आज बढ़ाना मान।।
3-
रघुवर की सौगंध है,
मारो दानव वीन।
जागो हे बजरंग अब,
पालो आके दीन।।
4-
खाते माँ सौगंध हैं,
साँची साँची बात।
छाई मन में धुंध है,
जैसें काली रात।।
5-
रघुवर की सौगंध से,
कपिवर चलते हाल।
प्रभुवर के आशीष से,
हनुमत की है चाल।।
💥🌼💥🌼💥🌼
🥀प्रभु पग धूल🥀
लक्ष्मी कान्त सोनी
महोबा
उत्तर प्रदेश

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