सहकारिता के दावे हवा-हवाई, किसान अब भी जूझ रहे तकनीक, ऋण और बाजार की मार से
सहकारिता के दावे हवा-हवाई, किसान अब भी जूझ रहे तकनीक, ऋण और बाजार की मार से”
लखनऊ, 19 मई 2025
मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने हाल ही में एक बयान में कहा कि “सहकारी संस्थाओं को आत्मनिर्भर बनाते हुए तकनीक, ऋण और विपणन तक किसानों की पहुंच सुनिश्चित की जा रही है।” उन्होंने यह भी कहा कि प्रदेश सरकार किसानों को सहकारिता के माध्यम से समृद्ध और सशक्त बनाने के लिए नीतिगत सुधार कर रही है।
हालांकि ज़मीनी हकीकत इस दावे से मेल नहीं खाती। उत्तर प्रदेश के कई ग्रामीण और पिछड़े क्षेत्रों में आज भी सहकारी संस्थाएं कागज़ों पर ही सशक्त हैं।
किसान बोले— ‘न तकनीक मिली, न बाजार’
चित्रकूट, बांदा, और महोबा जैसे जिलों के किसानों से बातचीत में सामने आया कि उन्हें आज भी आधुनिक कृषि उपकरण, डिजिटल जानकारी और समय पर उर्वरक या बीज नहीं मिलते। सहकारी समितियों में भ्रष्टाचार और भाई-भतीजावाद ने ईमानदार किसानों को पीछे कर रखा है।
कर्ज के जाल में उलझे किसान
राज्य में किसान क्रेडिट कार्ड की प्रक्रिया जटिल बनी हुई है। बैंकों और सहकारी समितियों के बीच तालमेल की कमी के चलते किसान अक्सर निजी साहूकारों के पास जाने को मजबूर हैं। ऐसे में ऋण माफी और सहकारी योजनाएं सिर्फ घोषणाओं तक सीमित दिखती हैं।
विपणन का कोई स्थायी समाधान नहीं
सरकार ने एमएसपी पर खरीद का वादा किया था, लेकिन कई जिलों में गेहूं और धान की खरीद नाम मात्र की हुई। मंडियों की स्थिति बदतर है और बिचौलियों का बोलबाला आज भी जारी है।
विशेषज्ञों की राय
कृषि विशेषज्ञ डॉ. रमेश त्रिपाठी का कहना है, “सरकार को सहकारिता के नाम पर प्रचार से ज्यादा ज़मीनी निवेश की जरूरत है। जब तक किसान तक डिजिटल और आर्थिक संसाधनों की पहुंच नहीं होगी, सहकारिता सिर्फ एक नारा बनकर रह जाएगी।”
निष्कर्ष
सरकार के दावे और वास्तविकता के बीच खाई अब और चौड़ी होती दिख रही है। अगर सही मायनों में सहकारी संस्थाओं को सशक्त नहीं किया गया, तो “आत्मनिर्भर किसान” का सपना सिर्फ भाषणों तक ही सीमित रह जाएगा।