केंद्र ने विधिक मापविज्ञान (सामान्य) नियम, 2011 के अंतर्गत गैस मीटरों के लिए मसौदा नियम बनाए
केंद्र ने विधिक मापविज्ञान (सामान्य) नियम, 2011 के अंतर्गत गैस मीटरों के लिए मसौदा नियम बनाए
ये नियम व्यापार और वाणिज्य के लिए उपयोग में लाए जाने से पहले गैस मीटरों का परीक्षण, सत्यापन और स्टाम्पिंग अनिवार्य बनाते हैं
भारत सरकार के उपभोक्ता मामलों के विभाग ने विधिक मापविज्ञान (सामान्य) नियम, 2011 के अंतर्गत गैस मीटरों के लिए मसौदा नियम तैयार करके उपभोक्ता संरक्षण को मजबूत करने, न्यायसंगत व्यापार पद्धतियों को बढ़ावा देने और गैस के उपयोग में सटीक माप सुनिश्चित करने की दिशा में महत्वपूर्ण कदम उठाया है। इन नियमों के अंतर्गत घरेलू, वाणिज्यिक और औद्योगिक उद्देश्यों के लिए उपयोग में लाए जाने वाले सभी गैस मीटरों के लिए व्यापार और वाणिज्य में उनके उपयोग से पहले परीक्षण, सत्यापन और मुहर लगवाना अनिवार्य है। गैस मीटरों के उपयोग में लाने पर उनकी शुद्धता सुनिश्चित करने के लिए इन नियमों के अंतर्गत उनका पुनः सत्यापन भी निर्धारित किया गया है।
इन नए नियमों का प्राथमिक उद्देश्य गैस के मापन में सटीकता, पारदर्शिता और विश्वसनीयता सुनिश्चित करना है। सत्यापित और मुहर लगे गैस मीटर अधिक शुल्क लेने या कम मापन को रोकेंगे, विवादों में कमी लाएंगे और उपभोक्ताओं को दोषपूर्ण या हेरफेर किए गए उपकरणों से निश्चित तौर पर सुरक्षा प्रदान करेंगे। उपभोक्ताओं को उचित बिलिंग, बेहतर ऊर्जा दक्षता तथा मानकीकृत एवं अनुरूप उपकरणों की बदौलत कम रखरखाव लागत के जरिए सीधा लाभ मिलेगा।
उपभोक्ताओं को होने वाले लाभों के अलावा, ये नियम विनिर्माताओं और गैस वितरण कंपनियों के लिए एक संरचित अनुपालन ढांचा प्रदान करते हैं, जो सर्वोत्तम अंतर्राष्ट्रीय पद्धतियों और ओआईएमएल (इंटरनेशनल ऑर्गेनाइजेशन ऑफ लीगन मेट्रोलॉजी) मानकों के अनुरूप है। यह संबद्धता वैश्विक मानकों के प्रति भारत की प्रतिबद्धता को मजबूत बनाती है, अंतर्राष्ट्रीय व्यापार में विश्वसनीयता बढ़ाती है और घरेलू विनिर्माण इकोसिस्टम के भीतर नवाचार और गुणवत्ता आश्वासन को प्रोत्साहित करती है।
उपभोक्ता मामले विभाग के विधिक मापविज्ञान प्रभाग को सभी तौल और माप की सटीकता सुनिश्चित करने का काम सौंपा गया है। उसने इन नियमों का मसौदा तैयार करने के लिए गहन और समावेशी परामर्श प्रक्रिया का पालन किया है। इस मसौदे को तैयार करने के लिए भारतीय विधिक मापविज्ञान संस्थान (आईआईएलएम), क्षेत्रीय संदर्भ मानक प्रयोगशालाओं (आरआरएसएल), उद्योग जगत के विशेषज्ञों और स्वैच्छिक उपभोक्ता संगठनों (वीसीओ) के प्रतिनिधियों वाली एक तकनीकी समिति का गठन किया गया था। साथ ही, भारतीय मानक ब्यूरो (बीआईएस) को मसौदे की जांच करने तथा वैज्ञानिक और तकनीकी इनपुट प्रदान करने के लिए साथ जोड़ा गया।
मसौदा नियमों को निर्माताओं, परीक्षण प्रयोगशालाओं, सिटी गैस वितरण (सीजीडी) कंपनियों और राज्य विधिक मापविज्ञान विभागों सहित हितधारकों के बीच व्यापक रूप से प्रसारित किया गया। उनकी प्रतिक्रिया का सावधानीपूर्वक विश्लेषण किया गया और जहाँ भी आवश्यक था, उसे अंतिम मसौदे में शामिल किया गया। प्रत्येक पहलू पर व्यापक रूप से गौर करना तथा नियामक आवश्यकताओं और कार्यान्वयन में सुगमता के बीच संतुलन बनाए रखना सुनिश्चित करने के लिए हितधारकों के बैठकों और अंतर-विभागीय परामर्शों के कई दौर संपन्न हुए।
विचार-विमर्श के बाद, नियमों को अंतिम रूप दिया गया, जिसमें उद्योग और कार्यान्वयन अधिकारियों को अनुपालन की तैयारी के लिए एक संक्रमणकालीन अवधि का प्रावधान किया गया। यह सुविचारित दृष्टिकोण गैस आपूर्ति को बाधित किए बिना या उपभोक्ताओं या व्यवसायों पर बोझ डाले बिना पूरे देश में सुचारू कार्यान्वयन सुनिश्चित करता है।
यह पहल वैश्विक मानकों के अनुरूप भारत के मापन इकोसिस्टम को आधुनिक बनाने, उपभोक्ताओं के विश्वास को बढ़ाने और बाजार में दक्षता और ईमानदारी को बढ़ावा देने के प्रति विभाग की प्रतिबद्धता को रेखांकित करती है। इन नियमों के साथ, भारत उपभोक्ता-केंद्रित शासन और अंतर्राष्ट्रीय मानकीकरण के अपने विजन के अनुरूप गैस माप की पारदर्शी और जवाबदेह प्रणाली के करीब पहुंच गया है।