मल गाद और सेप्टेज प्रबंधन: सेवा एवं व्यवसाय मॉडल’ पर नीति आयोग ने रिपोर्ट जारी की

मल गाद और सेप्टेज प्रबंधन: सेवा एवं व्यवसाय मॉडल’ पर नीति आयोग ने रिपोर्ट जारी की

लक्ष्मी कान्त सोनी

नीति आयोग ने मंगलवार को शहरी इलाकों में मल गाद और सेप्टेज प्रबंधन (एफएसएसएम) से जुड़ी एक किताब रिलीज की। नेशनल फीकल स्लज एंड सेप्टेज मैनेजमेंट एलायंस (एनएफएसएसएम) के साथ मिलकर इस किताब को तैयार किया गया है जिसमें 10 राज्यों के कई शहरों द्वारा सेवा और व्यवसाय मॉडल के तहत मल गाद और सेप्टेज प्रबंधन के 27 मामलों पर अध्ययन को छापा गया है।

इस किताब का विमोचन नीति आयोग के सीईओ श्री अमिताभ कांत, आवासन और शहरी कार्य मंत्रालय सचिव श्री दुर्गा शंकर मिश्रा और नीति आयोग के अपर सचिव डॉ. के राजेश्वर राव ने एक ऑनलाइन कार्यक्रम में जुड़कर किया।

इस मौके पर श्री अमिताभ कांत ने कहा कि स्वच्छ भारत मिशन के तहत ठोस प्रयासों के चलते शहरी क्षेत्रों में 70 लाख से अधिक शौचालयों का निर्माण किया गया है और कई अन्य परिवर्तनकारी पहलें इस दिशा में की गईं जिससे भारत ने स्वच्छता क्षेत्र में लंबी छलांग लगाई जो पहले कभी संभव नहीं हुआ था। उन्होंने इस बात पर भी प्रकाश डाला कि ‘खुले में शौच-मुक्त’ भारत का लक्ष्य प्राप्त करने के बाद अब सरकार जन स्वास्थ्य सुविधाओं के क्षेत्र में सुधार लाने के लक्ष्य पर काम कर रही है। इस दिशा में ODF+ (खुले में शौच-मुक्त + ) और ODF++ (खुले में शौच-मुक्त ++) के लक्ष्य निर्धारित हैं। यह पुस्तक मल गाद और सेप्टेज प्रबंधन की सर्वोत्तम प्रथाओं को एकत्रित करती है जिन्हें देश भर में अपनाया जा सकता है।

आवासन और शहरी कार्य मंत्रालय के सचिव श्री दुर्गा शंकर मिश्रा ने कहा, “मल गाद और सेप्टेज प्रबंधन के समाधानों के महत्व को देखते हुए, आवास और शहरी मामलों के मंत्रालय ने 2017 में इस पर राष्ट्रीय नीति बनाई थी। नीति का पूरे देश में सख्ती से पालन किया गया है और 24 से अधिक राज्यों ने इसे अपनाया है। 12 राज्यों ने अपनी नीतियों को भी लागू किया है।”

शहरी भारत में 66 लाख घरेलू शौचालयों और 6 लाख से अधिक सामुदायिक और सार्वजनिक शौचालयों के निर्माण के साथ शौचालयों की सार्वभौमिक पहुंच हासिल की गई है। खुले में शौच-मुक्त भारत के लक्ष्य को प्राप्त करने के बाद, भारत अब ODF+ और ODF++ बनने की ओर बढ़ गया है।

ये लक्ष्य शौचालय तक पहुंच और सुरक्षित स्वच्छता प्रणालियों से परे अब मल के सही और सुरक्षित निपटान पर केंद्रित हैं।

रिपोर्ट में उल्लेख किया गया है कि लगभग 60% शहरी परिवार ऑनसाइट स्वच्छता प्रणालियों पर निर्भर हैं, जहां इन प्रणालियों के तहत जमा कचरे के प्रबंधन के लिए खास योजना की आवश्यकता है। इसलिए एफएसएसएम की योजना मानव मल प्रबंधन को प्राथमिकता देती है क्योंकि इसमें रोगों को फैलाने की काफी संभावना होती है। इसकी नियोजन रणनीतियों में संयत्रों को खाली करना, दूसरी जगहों तक ले जाना, कचरे का सुरक्षित निपटान और इससे निकलने वाले कचरे से भी कुछ तत्वों को दोबारा प्रयोग योग्य बनाना शामिल होता है। यह कम लागत और आसानी से मापा जाने वाला स्वच्छता समाधान है।

कई भारतीय शहरों ने अनुकरणीय एफएसएसएम योजना मॉडल अपनाए हैं जिनमें निजी क्षेत्र की उचित भागीदारी से इनका संचालन किया जा रहा है। इस पुस्तक का उद्देश्य भारतीय शहरों को ऐसे ही अनुकरणीय मॉडलों का एक व्यापक संसाधन प्रदान करना है ताकि अन्य शहर भी स्थायी और समावेशी स्वच्छता की योजना बना सकें।

इस कार्यक्रम के दौरान, नीति आयोग के अपर सचिव डॉ. के राजेश्वर राव ने कहा, “सरकार का दीर्घकालिक लक्ष्य हर जगह सीवर का जाल बिछाना है। हालांकि, आज हमारी शहरी आबादी का 60 प्रतिशत हिस्सा ऑनसाइट स्वच्छता प्रणालियों पर निर्भर करता है जिसमें मल गाद और सेप्टेज प्रबंधन के लिए समर्पित योजना की आवश्यकता है। इस किताब में शामिल मामलों में राज्य और शहर के हस्तक्षेप के साथ-साथ निजी क्षेत्र के नेतृत्व वाले मॉडल और सामुदायिक भागीदारी के भी कई अनुकरणीय मामले प्रस्तुत किए गए हैं। यह पुस्तक नगरपालिका के अधिकारियों, नीति नियोजकों और निजी क्षेत्र के लोगों और उद्यमियों को मल गाद और सेप्टेज प्रबंधन को एक बड़ी आर्थिक गतिविधि के रूप में लेने में मदद करेगी।”

एनएफएसएसएम एलायंस स्टीयरिंग कमेटी की सदस्य और बिल और मेलिंडा गेट्स फाउंडेशन की उप-निदेशक मधु कृष्णा ने कहा, “एनएफएसएसएम एलायंस ने हमारे शहरों के कचरे को प्रभावी ढंग से प्रबंधित करने के लिए स्वच्छता मूल्य श्रृंखला में कई नए मॉडल, नीतियों और दिशा-निर्देशों पर राज्य सरकारों के साथ काम किया है। सुरक्षित स्वच्छता का योगदान सार्वजनिक स्वास्थ्य और पर्यावरणीय स्थिरता दोनों को सुनिश्चित करने में काफी बड़ा है। बस, मानव अपशिष्ट के सुरक्षित और पूर्ण उपचार पर गंभीर तौर पर ध्यान देने की जरूरत है।  इस रिपोर्ट में शामिल सभी मॉडल्स अन्य राज्यों और शहरों द्वारा अपनाए जा सकते हैं ताकि देश भर में अगले पांच वर्षों में 100 फीसदी मल गाद और सेप्टेज प्रबंधन के प्रभावी तरीकों को अपनाया जा सके।”

यह रिपोर्ट शहरी प्रबंधकों, नगरपालिका के अधिकारियों, निर्वाचित प्रतिनिधियों, राज्य के नीति निर्माताओं, सिविल सोसाइटी संगठनों और निजी क्षेत्र के लोगों के लिए मल गाद और सेप्टेज प्रबंधन के विकास और इससे पैदा हो रहे अवसरों को समझने के लिए मददगार साबित होगी।

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