श्री जुगल किशोर मूर्ति चोरी काण्ड: 37 वर्षों से न्याय की प्रतीक्षा, रहस्य आज भी अनसुलझा
श्री जुगल किशोर मूर्ति चोरी काण्ड: 37 वर्षों से न्याय की प्रतीक्षा, रहस्य आज भी अनसुलझा
06 अप्रैल 2025
कुलपहाड़ (महोबा):
दिनांक 03 फरवरी 1987 को कुलपहाड़ थाना क्षेत्र के ग्राम सुगिरा स्थित ऐतिहासिक श्री जुगल किशोर मंदिर से अष्टधातु की बहुमूल्य मूर्तियों की चोरी आज भी क्षेत्र के लोगों के लिए एक अनसुलझी पहेली बनी हुई है। तकरीबन 37 वर्ष बीत जाने के बाद भी यह मामला ठंडे बस्ते में पड़ा है। न्यायालय में मामला विचाराधीन है, परंतु अब तक न तो चोरों का पता चल पाया है, न ही मूर्तियाँ बरामद हो सकीं।
घटना का संक्षिप्त ब्यौरा:
घटना के समय वादी श्री मातादीन पाण्डेय पुत्र भानू प्रताप पाण्डेय निवासी ग्राम सुगिरा ने थाना कुलपहाड़ में रिपोर्ट दर्ज कराई थी। मुकदमा अपराध संख्या 20/1987 धारा 457/380 भादवि के अंतर्गत पंजीकृत हुआ था। प्रारंभिक जांच के दौरान पुलिस ने विवेचना के बाद दिनांक 03 मार्च 1987 को अंतिम रिपोर्ट संख्या 002 न्यायालय में प्रस्तुत कर दी थी, जिसके साथ ही विवेचना बंद कर दी गई।
पुलिस का कहना:
पुलिस अधिकारियों का कहना है कि यह घटना करीब 37 वर्ष पुरानी है। तमाम प्रयासों के बाद भी कोई सुराग हाथ नहीं लगा। दस्तावेजों के अनुसार, मामले में अंतिम रिपोर्ट प्रस्तुत कर दी गई है, और अब इस मामले के अनावरण की संभावना नगण्य मानी जा रही है।
मंदिर प्रशासन और जनप्रतिनिधियों की चुप्पी:
इस सनसनीखेज चोरी कांड के बावजूद न तो मंदिर प्रशासन ने कोई ठोस कदम उठाया, न ही क्षेत्र के सम्मानित जनप्रतिनिधियों ने आवाज उठाई। सबने मानो मौन साध लिया हो। वर्षों से इस मामले में केवल आश्वासन ही मिलते रहे, पर ठोस कार्रवाई का अभाव आज भी लोगों को खलता है।
कानून के लंबे हाथ भी रहे बौने:
कहते हैं कानून के हाथ लंबे होते हैं, परंतु इस मामले में यह कहावत पूरी तरह चरितार्थ नहीं हो सकी। शिकायतों और मांगों के बाद भी कोई ठोस परिणाम नहीं निकला। लोगों में यह धारणा बन गई है कि यदि समय रहते सख्त कदम उठाए गए होते तो शायद यह चोरी कांड सुलझ सकता था।
क्षेत्रीय जनता में आक्रोश:
37 वर्षों बाद भी जब मूर्तियों का कोई सुराग नहीं मिला तो क्षेत्रीय जनता में आक्रोश स्वाभाविक है। लोगों का कहना है कि प्रशासन और जांच एजेंसियों की निष्क्रियता के चलते ऐतिहासिक और सांस्कृतिक महत्व की मूर्तियाँ चोरी हो गईं और न्याय की उम्मीद धुंधली पड़ती चली गई।
निष्कर्ष:
श्री जुगल किशोर मूर्ति चोरी कांड केवल एक चोरी नहीं, बल्कि हमारी सांस्कृतिक धरोहर के साथ खिलवाड़ है। यह घटना प्रशासनिक सुस्ती, तंत्र की कमजोरी और जनप्रतिनिधियों की उदासीनता का ज्वलंत उदाहरण बन चुकी है। अब यह देखना होगा कि क्या कभी इस मामले में कोई नई पहल होती है या यह मामला यूँ ही इतिहास के पन्नों में दबकर रह जाएगा।