महा प्रलय के उपक्रम में उकेरे गए भाव
*भाग-1*
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*महा प्रलय के उपक्रम में उकेरे गए भाव- चित्र*।
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युगान्त क्षणान्त नियामक हे,
हे कृपा सिंधु सृष्टि -त्राता।
युग परिवर्तित जब देव करें,
नव परिवर्तन का वर देना।
*क्षिति ! महा प्रलय का सुनि क्रंदन*;
*कर युगल जोड़ करती वंदन* ,
*हे नाथ प्रलय रोको -रोको*;
*नही मिट जाएगा अखिल भुवन*,
*यह प्रलय नही है महाप्रलय*;
*इसमे सम्मिलित है वारि पवन*,
*तरु ताल नदी जड़ औ” चेतन*;
*पर्वतमाला के शिलाखंड*,
*गत्यावरोध में गिरि कानन*;
*एकात्मरूप वृत्यानर्तन*,
*हैं घूम रहे मिलि संग-संग*,
*हे मृत्यु- विवुध ! तेरे आँगन* ।
हृद प्रशमित जब नर -नाथ करें,
वृत्यागति अवरोधन देना।
युग परिवर्तित जब देव करें,
नव परिवर्तन का वर देना।
*भाग -2*
*प्रलयोपरांत प्रकृति एवं सृष्टि-नियंता द्वारा किए गए नवसृजन*
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जीवोत्पत्ति वसुधा प्रमत्त;
निर्जन के कन -कन का महत्व,
*आदित्य उदित अति उष्ण तप्त*;
*शनैः – शनैः वरुणादि गमत्त*,
*अम्बर प्रेषित वर्षा का जल*;
*हो अवनि तृप्ति प्रचुरित शीतल*,
*पवमान प्रभंजन त्वरण अरण्य*;
*जड़-संसृति के त्वमेव शरण्य*,
ज्यों जड़ कृतिवेश करें सर्वेश,
नव- रंग प्रकृति में भर देना।।
युग परिवर्तित जब देव करें,
नव परिवर्तन का वर देना।
🌿 तृतीय भाग🌿
*सृस्टि में प्रथम जीव-अवतरण*
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प्रथमादि वनस्पतयः विकीर्ण,
लघुजीवन तदोपरान्त अवतीर्ण।
अण्डज पिण्डज स्वेदज उद्भिज,
योनि के चार विमल सरसिज।
धरणी पर जीवन का उद्भव,
करुणेश तुम्हीं से है सम्भव।
धन-ऋण, यश-अपयश, लाभ-हानि,
विधि तेरा ही युग्मक विधान।
चेतन रोपण जब नाथ करें,
चर युगल रूप में ला देना।
*युग परिवर्तित जब देव करें*,
*नवपरिवर्तन का वर देना*।
——–सृजन जारी
✒️🇮🇳डॉ बलराम राष्ट्रवादी🇮🇳
अमेठी उत्तरप्रदेश
9956700161