विषय-अनसुलझे मूर्ति चोरी कांड
🥀मंदाक्रांता छंद🥀
(211 111 22
1 221 22)
विषय-अनसुलझे
मूर्ति चोरी कांड
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घोर कलयुग छाया,
नहीं चैन पाया।
चोर हरि हर लाया,
हरी रूप भाया।।
पाप करम कराया,
धर्म को नशाया।
नीच जग कहलाया,
जरा ना लजाया।।
घोर कलयुग—
खोज न पुलिस लाई,
निशानी मिटाई।
ऐक न सुलझ पाई,
विदानी दिखाई।।
बीस वरस विताई,
कहानी बनाई।
मूरत फिर चुराई,
चुनौती दिलाई।।
घोर कलयुग—
वेवश सर लखाये,
नहीं खोज लाये।
मूरख सुन बनाये,
हरी बेंच खाये।।
राज मनहि समाये,
हिया सोच छाये।
न्याय धरम हिराये,
जरा मोल पाये।।
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🥀प्रभु पग धूल🥀
लक्ष्मी कान्त सोनी
महोबा
उत्तर प्रदेश