पुलिस की निष्क्रियता और भारतीय न्याय प्रणाली की अनदेखी व जिम्मेदारों की चुप्पी ने 37 वर्षीय जुगल किशोर मूर्ति चोरी काण्ड को भ्रष्टाचार रूपी सिंधु में हमेशा के लिए डुबा दिया

37 वर्षों से अनसुलझा जुगल किशोर मूर्ति चोरी कांड: पुलिस की निष्क्रियता और भारतीय न्याय प्रणाली की विफलता का काला अध्याय

महोबा का ऐतिहासिक जुगल किशोर मंदिर और चोरी की घटना
1987 में उत्तर प्रदेश के महोबा जिले में स्थित जुगल किशोर मंदिर से भगवान जुगल किशोर की प्राचीन और दुर्लभ मूर्ति चोरी हो गई। यह मूर्ति न केवल धार्मिक आस्था का प्रतीक थी, बल्कि भारत की सांस्कृतिक धरोहर का अनमोल हिस्सा भी थी। लेकिन 37 वर्षों बाद भी यह मामला भारतीय न्याय प्रणाली और पुलिस व्यवस्था की विफलता का जीता-जागता उदाहरण बना हुआ है।

पुलिस की निष्क्रियता: कर्तव्य का घोर अपमान
चोरी के समय पुलिस ने मामले की जांच शुरू तो की, लेकिन नतीजा शून्य रहा। शुरुआती जांच में ही अधिकारियों ने अपनी लापरवाही दिखा दी।

1. घटिया जांच प्रक्रिया: चोरी की घटना के बाद पुलिस ने कोई ठोस सुराग इकट्ठा करने की कोशिश नहीं की।

2. दबाव में आई कार्रवाई: स्थानीय प्रशासन और नेताओं के दबाव के कारण जांच में पारदर्शिता नहीं रखी गई।

3. जिम्मेदारी से पल्ला झाड़ना: पुलिस ने इसे महज एक साधारण चोरी मानकर रफा-दफा करने की कोशिश की।

 

भारतीय न्याय प्रणाली की लचरता और देरी
भारत की न्याय प्रणाली, जिसे आम जनता का संरक्षक माना जाता है, इस मामले में पूरी तरह विफल रही।

1. मामलों का अंबार: न्यायालयों में लंबित मामलों की भरमार ने इस केस को भी अनदेखा कर दिया।

2. कोई त्वरित कार्रवाई नहीं: चोरी के इतने वर्षों बाद भी न्यायालय ने इस मुद्दे को प्राथमिकता नहीं दी।

3. प्रभावशाली लोगों का दखल: ऐसे मामलों में प्रभावशाली लोगों का हस्तक्षेप न्याय प्रक्रिया को और कमजोर कर देता है।

 

धरोहरों की सुरक्षा पर प्रशासन की लापरवाही
यह घटना प्रशासन की अक्षमता और सांस्कृतिक धरोहरों के प्रति उनकी उदासीनता को भी उजागर करती है।

धरोहरों की सुरक्षा का अभाव: मंदिर जैसी जगहों पर सुरक्षा के लिए कोई ठोस उपाय नहीं किए गए।

कोई नीति नहीं: सांस्कृतिक धरोहरों की चोरी रोकने के लिए कोई दीर्घकालिक रणनीति नहीं बनाई गई।

मीडिया और जनप्रतिनिधियों की खामोशी
मीडिया और जनप्रतिनिधियों की खामोशी ने इस मामले को और अधिक गहराई में दबा दिया।

1. टीआरपी आधारित पत्रकारिता: मीडिया ने इस मुद्दे को प्राथमिकता नहीं दी।

2. जनप्रतिनिधियों की उपेक्षा: नेताओं ने इसे केवल एक धार्मिक मामला मानकर अपनी जिम्मेदारी से मुंह मोड़ लिया।

 

विफलता के कारण और समाधान
भारतीय न्याय प्रणाली और पुलिस की विफलता के पीछे मुख्य कारण हैं:

1. भ्रष्टाचार और प्रभावशाली दबाव

2. जांच में लापरवाही और देरी

3. सांस्कृतिक धरोहरों के प्रति असंवेदनशीलता

 

संभावित समाधान:

विशेष जांच दल (SIT) का गठन

तेज न्याय प्रक्रिया सुनिश्चित करना

धरोहरों की सुरक्षा के लिए सख्त कानून

जन जागरूकता और मीडिया का सक्रिय सहयोग

निष्कर्ष
जुगल किशोर मूर्ति चोरी कांड भारतीय न्याय प्रणाली और पुलिस की निष्क्रियता का प्रतीक है। यह घटना केवल एक धार्मिक मूर्ति की चोरी नहीं है, बल्कि हमारी सांस्कृतिक धरोहरों की सुरक्षा में हमारी सामूहिक विफलता का प्रमाण है। अगर अब भी प्रशासन, पुलिस, न्याय प्रणाली और समाज ने अपनी जिम्मेदारी नहीं निभाई, तो ऐसी घटनाएं भविष्य में और भी बढ़ेंगी। 37 वर्षों की यह चुप्पी अब और बर्दाश्त नहीं की जा सकती। जिम्मेदारों को कठघरे में खड़ा करना और सांस्कृतिक धरोहरों की सुरक्षा सुनिश्चित करना आज की सबसे बड़ी जरूरत है।

 

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